Sunday, March 23, 2014

यात्रा और यात्री--हरिवंश राय बच्चन


यात्रा और यात्री





साँस चलती है तुझे

चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!

चल रहा है तारकों का

दल गगन में गीत गाता

चल रहा आकाश भी है


शून्य में भ्रमता-भ्रमाता

पाँव के नीचे पड़ी

अचला नहीं, यह चंचला है

एक कण भी, एक क्षण भी

एक थल पर टिक न पाता

शक्तियाँ गति की तुझे

सब ओर से घेरे हुए है

स्थान से अपने तुझे

टलना पड़ेगा ही, मुसाफिर!

साँस चलती है तुझे

चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!

थे जहाँ पर गर्त पैरों

को ज़माना ही पड़ा था

पत्थरों से पाँव के

छाले छिलाना ही पड़ा था

घास मखमल-सी जहाँ थी

मन गया था लोट सहसा

थी घनी छाया जहाँ पर

तन जुड़ाना ही पड़ा था

पग परीक्षा, पग प्रलोभन

ज़ोर-कमज़ोरी भरा तू

इस तरफ डटना उधर

ढलना पड़ेगा ही, मुसाफिर

साँस चलती है तुझे

चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!

शूल कुछ ऐसे, पगो में

चेतना की स्फूर्ति भरते

तेज़ चलने को विवश

करते, हमेशा जबकि गड़ते

शुक्रिया उनका कि वे

पथ को रहे प्रेरक बनाए

किन्तु कुछ ऐसे कि रुकने

के लिए मजबूर करते

और जो उत्साह का

देते कलेजा चीर, ऐसे

कंटकों का दल तुझे

दलना पड़ेगा ही, मुसाफिर

साँस चलती है तुझे

चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!

सूर्य ने हँसना भुलाया,

चंद्रमा ने मुस्कुराना

और भूली यामिनी भी

तारिकाओं को जगाना

एक झोंके ने बुझाया

हाथ का भी दीप लेकिन

मत बना इसको पथिक तू

बैठ जाने का बहाना

एक कोने में हृदय के

आग तेरे जग रही है,

देखने को मग तुझे

जलना पड़ेगा ही, मुसाफिर

साँस चलती है तुझे

चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!

वह कठिन पथ और कब

उसकी मुसीबत भूलती है

साँस उसकी याद करके

भी अभी तक फूलती है

यह मनुज की वीरता है

या कि उसकी बेहयाई

साथ ही आशा सुखों का

स्वप्न लेकर झूलती है

सत्य सुधियाँ, झूठ शायद

स्वप्न, पर चलना अगर है

झूठ से सच को तुझे

छलना पड़ेगा ही, मुसाफिर

साँस चलती है तुझे

चलना पड़ेगा ही मुसाफिर

Sunday, March 16, 2014

होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!-----हरिवंशराय बच्चन


 

         आपको रंगो के त्यौहार होली की

               हार्दिक शुभकामनाएं॥



                    
यह मिट्टी की चतुराई है,
रूप अलग औ’ रंग अलग,
भाव, विचार, तरंग अलग हैं,
ढाल अलग है ढंग अलग,

आजादी है जिसको चाहो आज उसे वर लो।
होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर को!

निकट हुए तो बनो निकटतर
और निकटतम भी जाओ,
रूढ़ि-रीति के और नीति के
शासन से मत घबराओ,

आज नहीं बरजेगा कोई, मनचाही कर लो।
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो!

प्रेम चिरंतन मूल जगत का,
वैर-घृणा भूलें क्षण की,
भूल-चूक लेनी-देनी में
सदा सफलता जीवन की,

जो हो गया बिराना उसको फिर अपना कर लो।
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!

होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो,
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो,
भूल शूल से भरे वर्ष के वैर-विरोधों को,
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!


     
                   --------हरिवंशराय बच्चन