दूरस्थ शिक्षा में सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका
शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। यह विकास का मूलाधार है। किसी भी राष्ट्र का विकास शिक्षा के अभाव में असम्भव है चाहे वह राष्ट्र कितने ही प्राकृतिक संसाधनों से आच्छादित क्यों न हो। आज के बदलते परिवेश में परिवर्तन की धारा ने शिक्षा को विशेष रूप से प्रभावित किया है। जहाँ एक ओर मानवीय सम्बन्धों में बदलाव आया है, वहीं विज्ञान के बढ़ते चरण ने शिक्षा की दशा व दिशा दोनों ही परिवर्तित किये है। वैज्ञानिक आविष्कारों से प्रत्येक क्षेत्र में युगान्तकारी परिवर्तन हुए है। मनुष्य ने तकनीकी उन्नति के माध्यम से स्वयं का जीवन उन्नत किया है। सम्पूर्ण विश्व में वैश्वीकरण व मुक्त अर्थव्यवस्था का बोलबाला है। अब प्रश्न यह उठता है कि परिर्वतन की इस आँधी में क्या प्रत्येक व्यक्ति का मानसिक, सामाजिक व आर्थिक विकास हुआ है? यदि नही तो इसमें सुधार की क्या सम्भावना तलाशी जाय? शिक्षा ही वह हथियार है जिसके द्वारा व्यक्ति के जीवन स्तर को ऊँचा उठाया जा सकता है। शिक्षा की व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए कि निम्नतम से निम्नतम व्यक्ति भी इसकेे द्वारा लाभान्वित हो सके और वैश्वीकरण के इस दौर में अपनी भूमिका निश्चित कर सके।
छात्र व छात्राओं की वर्तमान पीढ़ी में कुछ अभूतपूर्व परिवर्तन देखे जा सकते है। वे विद्यालयी शिक्षा को तो सहर्ष स्वीकार करते है, परन्तु इसके बन्धनों से परे शिक्षा की अपेक्षा भी करने लगे है। इस दौर में दूरस्थ शिक्षा द्वारा विकास की सम्भावनाएँ तलाशी जा रही है। दूरस्थ शिक्षा को सफल बनाने में सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका का निहितार्थ भी तलाशा जाने लगा है। और इसे भरपूर उपयोग करके दूरस्थ शिक्षा की गुणवत्ता व उपयोगिता को बनाये रखने के प्रयास जारी है। इस हेतु आज शिक्षा को सैद्धान्तिक पाठ्यक्रमों के भँवर जाल से निकालकर मजबूत व्यावहारिक आधार देने की नितान्त आवश्यकता है।
शिक्षा बालक के सर्वांगीण विकास की ओर इंगित करती है, जिसके लिए पूर्व में चल रही शिक्षा व्यवस्था में कुछ आमूल-चूल परिवर्तन करने होगें, क्योंकि वर्तमान सूचना प्रौद्योगिकी के युग में बालक पुरानी शिक्षा व्यवस्था से वैश्वीकरण के सम्प्रत्यय को प्राप्त नही कर सकेगा। एक नये युग में प्रवेश जैसी धारणा को ध्यान में रखकर उसके पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों, मूल्यांकन व्यवस्था तथा उसको प्रदान किये जाने वाले अनुभवों को एक नया स्वरूप प्रदान करना होगा, जिससे आने वाली समस्याओं का समाधान वह स्वयं कर सके।
उच्चतर शिक्षा में विस्तार, उत्कृष्टता और समावेशन के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए मुक्त और दूरस्थ शिक्षा तथा मुक्त शैक्षिक संसाधनों का विकास अनिवार्य है। उच्चतर शिक्षा में दाखिल छात्रोें में 1/5 से अधिक छात्र मुक्त और दूरस्थ शिक्षा धारा में है। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग यह सिफारिश करता है कि दूरस्थ शिक्षा को इन विषयों पर ध्यान केन्द्रित करना होगा। एक राष्ट्रीय आई0सी0टी0 आधारिक-तन्त्र का सृजन करनाय विनियामक तंत्रों में सुधार लाना, वेव आधारित साझा मुक्त संसाधन विकसित करना, क्रेडिट बैंक स्थापित करना और राष्ट्रीय परीक्षण सेवा उपलब्ध कराना। इसकी संपूर्ति के लिए एनकेसी यह भी सिफारिश करता है कि उत्तम अंतर्वस्तु का निर्माण तथा वैश्विक मुक्त शैक्षिक संसाधनों का लाभ उठाने की ओर एक व्यापक ढंग से ध्यान केन्द्रित किये जाने की जरूरत है। हमें सभी सामग्री अनुसंधान लेखों, पुस्तकों, पत्रिकाओं आदि की मुक्त सुलभता को भी प्रोत्साहित करना चाहिए।
दूरस्थ शिक्षा की स्थिति पर दृष्टिपात करने से हम यह पाते है कि समूचे विश्व में अधिकांश विकासशील देशों ने मुक्त विश्वविद्यालयों की जरूरत महसूस की है। फ्रांस और यूके जैसे विकसित देशों ने मुक्त और दूरस्थ शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया है। आॅन लाइन शिक्षा के मांमले में संयुक्त राज्य अमेरिका निर्विवाद नेता बना हुआ है।
वर्ष 2004-05 में भारत में उच्चतर शिक्षा में लगभग ग्यारह मिलियन लोग दाखिल थे, जिनमें से मुक्त और दूरस्थ शिक्षा प्रणाली (परम्परागत कालेजों के दूरस्थ शिक्षा संस्थानों (डी0ई0आई0) द्वारा प्रस्तुत पत्राचार पाठ्यक्रमों सहित) ने लगभग 20 प्रतिशत लोगों को उच्च शिक्षा उपलब्ध करायी। इसके भीतर मुक्त विश्वविद्यालयों ने उच्चतर शिक्षा की मांग में से 10 प्रतिशत की पूर्ति की। 1996 से 2004 तक उच्चतर शिक्षा तथा मुक्त व दूरस्थ शिक्षा के नामांकन में वृद्धि हुई। 2000-01 में उच्चतर शिक्षा की केवल 4 प्रतिशत मांग की पूर्ति मुक्त विश्वविद्यालयों द्वारा की गई, जबकि 2003-04 में इस आशय का अनुपात लगभग 10प्रतिशत था। दूरस्थ शिक्षा का समग्र योगदान लगभग 19 प्रतिशत है।
21वीं सदी का शुभारम्भ सूचना प्रौद्योगिकी के युग के रूप में हुआ है। आज सूचना प्रौद्योगिकी पर राजनेताओं, योजनाकर्ताओं, प्रशासकों, व्यापारियों, वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं मीडिया से जुडे़ व्यक्ति, मनोरंजनकर्ताओं एवं सभी दूरदर्शी व्यक्तियों का रूझान है। क्योंकि इसका राष्ट्रीय विकास, विश्व व्यापार, वाणिज्य के संवर्द्धन उद्योग और कृषि के विकास तथा स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, राष्ट्रीय एकता व अन्य आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्याे में अत्यधिक महत्व है।
भारत एक विशाल देश है जहाँ जनसांख्यिकीय विस्फोट होने का अर्थ यह है कि उच्चतर शिक्षा को संगत आबादी की वृद्धि के साथ बने रहना होगा। भारत में उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में बहुत गहरा संकट है। उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश करने वाली हमारी 18-24 वर्ष के आयु वर्ग की आबादी का अनुपात लगभग 7ः है, जो एशिया के औसत का सिर्फ आधा है। विश्वविद्यालयों में उपलब्ध स्थानों की संख्या के दृष्टि से उच्चतर शिक्षा के लिए मौजूदा अवसर हमारी आवश्यकता के हिसाब से बिल्कुल पर्याप्त नही है। इतना ही नही उच्चतर शिक्षा के स्तर में जबरदस्त सुधार की आवश्यकता है। भारत जैसे देशों में प्रति व्यक्ति आय कम है, अशिक्षा का स्तर भी अधिक हैय यहाँ भाषा, जीवन शैली व संस्कृति का बहुतायत है। इस स्तर पर सूचना प्रौद्योगिक एक उत्पे्ररक की भूमिका का निर्वहन कर सकती है। शिक्षा के क्षेत्र में इसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान हो सकता है। भारत सूचना प्रौद्योगिकी के शिक्षा व विकास के क्षेत्र में क्षमता विस्तार के बारे में पूरी तरह सजग है। मानव संसाधन विकास मंत्री ने अपने मंत्रालय के 100 दिनों का एजेण्डा प्रस्तुत करते हुए शिक्षा विस्तार, निवेश और गुणवत्ता को मूलमंत्र बताया। इनका विचार है कि पूरी दूनिया में उदारीकरण एवं भूमण्डलीकरण के कारण आए बदलाव को देखते हुए शिक्षा के लक्ष्य और उसकी जरूरतों में परिवर्तन आ गया है। केन्द्र सरकार का जोर इस बात पर है कि शिक्षा को सूचना, संचार तथा प्रौद्योगिकी से जोड़ा जाए और आॅन लाइन शिक्षा प्रदान की जाय। वर्चुअल विश्वविद्यालय बनाने की भी कल्पना है, जिसके तहत कोई भी छात्र घर बैठे कम्प्यूटर व इण्टरनेट के द्वारा पढ़ाई पूरी कर सके। वित्त मंत्री ने भी इस वजट में सूचना एवं प्रौद्योगिकी के जरिए शिक्षा प्राप्त करने के वास्ते अधिक धन का आवंटन किया है। भारतीय परिपे्रक्ष्य में शिक्षा को व्यापक स्तर पर लाने हेतु दूरस्थ शिक्षा अग्रणी भूमिका निभा सकता है, क्योंकि बिखरी हुई जनसंख्या का वृहत क्षेत्र शिक्षा से अहूता है। जन-जन तक शिक्षा की ज्योति पहुँचाने हेतु प्रौद्योगिकी की अग्रणी भूमिका है। दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में सूचना सम्प्रेषण तकनीक के अनेक माध्यम है, जो प्रयोग में लाये जाते हैं। जैसे-
रेडियो प्रसारण, दूरदर्शन, श्रृव्य-दृश्य कैसटेस, इलेक्ट्रांनिक डाक, कम्प्यूटर नेटवर्क, फैक्स, टेलीकान्फ्रेन्सिग आदि।
मुक्त विश्वविद्यालयों में सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका स्वतः स्पष्ट होती है क्योंकि रेडियो व टेलीवीजन द्वारा भी इसका क्रियान्वयन होता है। इण्टरनेट का प्रारम्भ सन् 1995 को हुआ। इसके माध्यम से छात्रों को शिक्षण प्रशिक्षण के कार्यक्रम आसानी से सुलभ हो जाते है। ज्ञानदर्शन व ज्ञानवाणी जैसे शैक्षिक चैनल भी इसमें सहायता करते हैै। ज्ञानवाणी 7 नवम्बर 2001 से शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रसारण कर रहा है। इसी प्रकार ज्ञानदर्शन भी जनवरी 2000 से शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रसारण करता है। अनेक शिक्षाविद् व विषय विशेषज्ञ इन कार्यक्रमों की गुणवत्ता को संवद्र्वित करते है तथा समस्याओं का समाधान भी इसी माध्यम से किया जाता है। भारतीय उपग्रह इन्सेट प् ठ की स्थापना भूमध्य रेखा के ऊपर 3600 ज्ञउ की ऊँचाई पर की गई। इसके माध्यम से दूरस्थ शिक्षा के प्रसार में रेडियो, टीवी का भरपूर उपयोग किया जाने लगा है।
27 अक्टूबर 2009 को इग्नू ने तीसरी पीढी (3ळ) की मोबाइल फोन प्रौद्योगिकी के जरिए आॅन लाइन शिक्षा प्रदान करने के लिए स्वीडन की दूर संचार कम्पनी एरिक्सन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये है। अधिकारियों ने बताया कि इग्नू शुरूआत में सूचना प्रौद्योगिकी का सर्टीफिकेट कोर्स कर रहे 1000 छात्रों को 3ळ के जरिए शिक्षा देगा। अगले छः माह के लिए इसे पायलेट परियोजना की तरह चलाया जायेगा। इग्नू ने छः माह बाद पूरे देश में चलाये जा रहे सभी कोर्सो में 3ळ का उपयोग करने की योजना बनाई है।
भारत में प्ब्ज् के उपयोग के क्षेत्र में विशाल भौगोलिक व जनसांख्यिकीय आधार पर असमानता पाई जाती है। भारत में विश्व का सबसे अधिक प्ब्ज् कार्य बल है। इससे एक ओर जहाँ देश में प्रौद्योगिकी उपयोग से बंगलौर और गुड़गाँव जैसे शहरों का विकास व उच्च आय वर्ग की उत्पत्ति हुई है। वहीं दूसरी ओर देश का एक बड़ा हिस्सा टेलीफोन कनेक्टीविटी से भी वंचित है। प्रधानमंत्री जी द्वारा जुलाई 1998 में गठित कार्य दल ने स्कूलों तथा शिक्षा क्षेत्र में प्ज् का उपयोग करने की सिफारिश की थी। दूरस्थ शिक्षा एवं रोजगार प्रदान करने के लिए श्रृव्य-दृष्य एवं उपग्रह आधारित उपकरणों के माध्यम से सूचना व संचार प्रौद्योगिकी के प्रयोग को बढ़ावा देना भी इसमें सम्मिलित है। स्पष्ट है कि जनसंख्या के बढ़ते दबाव में दूरस्थ शिक्षा एक ऐसा विकल्प हो सकता है, जोकि हमारे देश की शिक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। आंकडे़ भी बताते है कि दूरस्थ शिक्षा की भागीदारी निश्चित रूप से सराहनीय है परन्तु शिक्षा के स्तर व आपूर्ति तंत्र में सुधार की महती आवश्यकता है। क्योंकि गुणवत्ता सम्बन्धी चिन्ताएं आय के सापेक्ष गौण हो जाती है। दूर शिक्षा में गुणवत्ता संवर्द्धन हेतु सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका तय करने में भारी निवेश की आवश्यकता है क्योंकि महत्वपूर्ण आयोगों, शिक्षाविद्ों तथा सरकार ने भी प्रौद्योगिकी के प्रयोग पर बल दिया है।
उच्चतर शिक्षा में मुक्त और दूरस्थ शिक्षा का मौजूदा आकार और हिस्सा महत्वपूर्ण है फिर भी जीवनपर्यन्त अधिगम की दृष्टि से यह अत्यन्त छोटा है। विभिन्न इलेक्ट्राॅनिक माध्यमों का शिक्षा शास्त्रीय प्रयोग अभी भी बहुत सीमित है। इसे विस्तृत करने की जरूरत है। यदि सूचना प्रौद्योगिकी के सशक्त माध्यम से जैसे-इण्टरनेट , इलेक्ट्राॅनिक मेल,
फैक्स व टेलीकोफ्रेसिंग का भरपूर प्रयोग किया जाय तो औपचारिक शिक्षा की अपेक्षा दूरस्थ शिक्षा पर व्यय भार भी कम होगा तथा शिक्षा की गम्भीर चुनौतियों का सामना करने में दूरस्थ शिक्षा निश्चित रूप से सक्षम होगी।
दूरस्थ शिक्षा को सफल व सार्वभौमिक बनाने हेतु निम्नांकित सुझाव प्रस्तुत हैं-
1. शिक्षण प्रक्रिया में सूचना प्रौद्योगिकी का भरपूर प्रयोग किया जाय।
2. तहनीकी माध्यमों से ही परीक्षा प्रक्रिया पर बल दिया जाय।
3. जनसंख्या के बढ़ते दबाव को देखते हुए दूरस्थ शिक्षा में भारी निवेश की भी आवश्यकता है।
4. टेलीकांन्फ्रेसिंग का प्रयोग करके शिक्षक-छात्र सम्पर्क पर बल दिया जाय, क्योंकि दूरस्थ शिक्षा का यह बिन्दु सर्वाधिक विचारणीय है।
5. दूरस्थ शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने में श्रृव्य-दृश्य सामग्री को प्रत्येक अधिगमकर्ता के लिए उपलब्ध कराया जाय।
6. उपग्रह सम्प्रेषण द्वारा भी शिक्षण प्रक्रिया को सुलभ बनाया जाय।
7. छात्र-छात्राओं की समस्याओं का इलेक्ट्राॅनिक माध्यमों द्वारा दु्रतगामी समाधान भी किया जाय, जिससे दूरस्थ शिक्षा औपचारिक शिक्षा के सामने गुणवत्ता की कसौटी पर खरी उतरें।
8. दूरस्थ शिक्षा को ’’सूचना प्रौद्योगिकी क्रान्ति’’ द्वारा ’’ज्ञान का विस्फोट’’ जैसी संकल्पना को साकार किया जाय।
शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। यह विकास का मूलाधार है। किसी भी राष्ट्र का विकास शिक्षा के अभाव में असम्भव है चाहे वह राष्ट्र कितने ही प्राकृतिक संसाधनों से आच्छादित क्यों न हो। आज के बदलते परिवेश में परिवर्तन की धारा ने शिक्षा को विशेष रूप से प्रभावित किया है। जहाँ एक ओर मानवीय सम्बन्धों में बदलाव आया है, वहीं विज्ञान के बढ़ते चरण ने शिक्षा की दशा व दिशा दोनों ही परिवर्तित किये है। वैज्ञानिक आविष्कारों से प्रत्येक क्षेत्र में युगान्तकारी परिवर्तन हुए है। मनुष्य ने तकनीकी उन्नति के माध्यम से स्वयं का जीवन उन्नत किया है। सम्पूर्ण विश्व में वैश्वीकरण व मुक्त अर्थव्यवस्था का बोलबाला है। अब प्रश्न यह उठता है कि परिर्वतन की इस आँधी में क्या प्रत्येक व्यक्ति का मानसिक, सामाजिक व आर्थिक विकास हुआ है? यदि नही तो इसमें सुधार की क्या सम्भावना तलाशी जाय? शिक्षा ही वह हथियार है जिसके द्वारा व्यक्ति के जीवन स्तर को ऊँचा उठाया जा सकता है। शिक्षा की व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए कि निम्नतम से निम्नतम व्यक्ति भी इसकेे द्वारा लाभान्वित हो सके और वैश्वीकरण के इस दौर में अपनी भूमिका निश्चित कर सके।
छात्र व छात्राओं की वर्तमान पीढ़ी में कुछ अभूतपूर्व परिवर्तन देखे जा सकते है। वे विद्यालयी शिक्षा को तो सहर्ष स्वीकार करते है, परन्तु इसके बन्धनों से परे शिक्षा की अपेक्षा भी करने लगे है। इस दौर में दूरस्थ शिक्षा द्वारा विकास की सम्भावनाएँ तलाशी जा रही है। दूरस्थ शिक्षा को सफल बनाने में सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका का निहितार्थ भी तलाशा जाने लगा है। और इसे भरपूर उपयोग करके दूरस्थ शिक्षा की गुणवत्ता व उपयोगिता को बनाये रखने के प्रयास जारी है। इस हेतु आज शिक्षा को सैद्धान्तिक पाठ्यक्रमों के भँवर जाल से निकालकर मजबूत व्यावहारिक आधार देने की नितान्त आवश्यकता है।
शिक्षा बालक के सर्वांगीण विकास की ओर इंगित करती है, जिसके लिए पूर्व में चल रही शिक्षा व्यवस्था में कुछ आमूल-चूल परिवर्तन करने होगें, क्योंकि वर्तमान सूचना प्रौद्योगिकी के युग में बालक पुरानी शिक्षा व्यवस्था से वैश्वीकरण के सम्प्रत्यय को प्राप्त नही कर सकेगा। एक नये युग में प्रवेश जैसी धारणा को ध्यान में रखकर उसके पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों, मूल्यांकन व्यवस्था तथा उसको प्रदान किये जाने वाले अनुभवों को एक नया स्वरूप प्रदान करना होगा, जिससे आने वाली समस्याओं का समाधान वह स्वयं कर सके।
उच्चतर शिक्षा में विस्तार, उत्कृष्टता और समावेशन के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए मुक्त और दूरस्थ शिक्षा तथा मुक्त शैक्षिक संसाधनों का विकास अनिवार्य है। उच्चतर शिक्षा में दाखिल छात्रोें में 1/5 से अधिक छात्र मुक्त और दूरस्थ शिक्षा धारा में है। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग यह सिफारिश करता है कि दूरस्थ शिक्षा को इन विषयों पर ध्यान केन्द्रित करना होगा। एक राष्ट्रीय आई0सी0टी0 आधारिक-तन्त्र का सृजन करनाय विनियामक तंत्रों में सुधार लाना, वेव आधारित साझा मुक्त संसाधन विकसित करना, क्रेडिट बैंक स्थापित करना और राष्ट्रीय परीक्षण सेवा उपलब्ध कराना। इसकी संपूर्ति के लिए एनकेसी यह भी सिफारिश करता है कि उत्तम अंतर्वस्तु का निर्माण तथा वैश्विक मुक्त शैक्षिक संसाधनों का लाभ उठाने की ओर एक व्यापक ढंग से ध्यान केन्द्रित किये जाने की जरूरत है। हमें सभी सामग्री अनुसंधान लेखों, पुस्तकों, पत्रिकाओं आदि की मुक्त सुलभता को भी प्रोत्साहित करना चाहिए।
दूरस्थ शिक्षा की स्थिति पर दृष्टिपात करने से हम यह पाते है कि समूचे विश्व में अधिकांश विकासशील देशों ने मुक्त विश्वविद्यालयों की जरूरत महसूस की है। फ्रांस और यूके जैसे विकसित देशों ने मुक्त और दूरस्थ शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया है। आॅन लाइन शिक्षा के मांमले में संयुक्त राज्य अमेरिका निर्विवाद नेता बना हुआ है।
वर्ष 2004-05 में भारत में उच्चतर शिक्षा में लगभग ग्यारह मिलियन लोग दाखिल थे, जिनमें से मुक्त और दूरस्थ शिक्षा प्रणाली (परम्परागत कालेजों के दूरस्थ शिक्षा संस्थानों (डी0ई0आई0) द्वारा प्रस्तुत पत्राचार पाठ्यक्रमों सहित) ने लगभग 20 प्रतिशत लोगों को उच्च शिक्षा उपलब्ध करायी। इसके भीतर मुक्त विश्वविद्यालयों ने उच्चतर शिक्षा की मांग में से 10 प्रतिशत की पूर्ति की। 1996 से 2004 तक उच्चतर शिक्षा तथा मुक्त व दूरस्थ शिक्षा के नामांकन में वृद्धि हुई। 2000-01 में उच्चतर शिक्षा की केवल 4 प्रतिशत मांग की पूर्ति मुक्त विश्वविद्यालयों द्वारा की गई, जबकि 2003-04 में इस आशय का अनुपात लगभग 10प्रतिशत था। दूरस्थ शिक्षा का समग्र योगदान लगभग 19 प्रतिशत है।
21वीं सदी का शुभारम्भ सूचना प्रौद्योगिकी के युग के रूप में हुआ है। आज सूचना प्रौद्योगिकी पर राजनेताओं, योजनाकर्ताओं, प्रशासकों, व्यापारियों, वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं मीडिया से जुडे़ व्यक्ति, मनोरंजनकर्ताओं एवं सभी दूरदर्शी व्यक्तियों का रूझान है। क्योंकि इसका राष्ट्रीय विकास, विश्व व्यापार, वाणिज्य के संवर्द्धन उद्योग और कृषि के विकास तथा स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, राष्ट्रीय एकता व अन्य आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्याे में अत्यधिक महत्व है।
भारत एक विशाल देश है जहाँ जनसांख्यिकीय विस्फोट होने का अर्थ यह है कि उच्चतर शिक्षा को संगत आबादी की वृद्धि के साथ बने रहना होगा। भारत में उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में बहुत गहरा संकट है। उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश करने वाली हमारी 18-24 वर्ष के आयु वर्ग की आबादी का अनुपात लगभग 7ः है, जो एशिया के औसत का सिर्फ आधा है। विश्वविद्यालयों में उपलब्ध स्थानों की संख्या के दृष्टि से उच्चतर शिक्षा के लिए मौजूदा अवसर हमारी आवश्यकता के हिसाब से बिल्कुल पर्याप्त नही है। इतना ही नही उच्चतर शिक्षा के स्तर में जबरदस्त सुधार की आवश्यकता है। भारत जैसे देशों में प्रति व्यक्ति आय कम है, अशिक्षा का स्तर भी अधिक हैय यहाँ भाषा, जीवन शैली व संस्कृति का बहुतायत है। इस स्तर पर सूचना प्रौद्योगिक एक उत्पे्ररक की भूमिका का निर्वहन कर सकती है। शिक्षा के क्षेत्र में इसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान हो सकता है। भारत सूचना प्रौद्योगिकी के शिक्षा व विकास के क्षेत्र में क्षमता विस्तार के बारे में पूरी तरह सजग है। मानव संसाधन विकास मंत्री ने अपने मंत्रालय के 100 दिनों का एजेण्डा प्रस्तुत करते हुए शिक्षा विस्तार, निवेश और गुणवत्ता को मूलमंत्र बताया। इनका विचार है कि पूरी दूनिया में उदारीकरण एवं भूमण्डलीकरण के कारण आए बदलाव को देखते हुए शिक्षा के लक्ष्य और उसकी जरूरतों में परिवर्तन आ गया है। केन्द्र सरकार का जोर इस बात पर है कि शिक्षा को सूचना, संचार तथा प्रौद्योगिकी से जोड़ा जाए और आॅन लाइन शिक्षा प्रदान की जाय। वर्चुअल विश्वविद्यालय बनाने की भी कल्पना है, जिसके तहत कोई भी छात्र घर बैठे कम्प्यूटर व इण्टरनेट के द्वारा पढ़ाई पूरी कर सके। वित्त मंत्री ने भी इस वजट में सूचना एवं प्रौद्योगिकी के जरिए शिक्षा प्राप्त करने के वास्ते अधिक धन का आवंटन किया है। भारतीय परिपे्रक्ष्य में शिक्षा को व्यापक स्तर पर लाने हेतु दूरस्थ शिक्षा अग्रणी भूमिका निभा सकता है, क्योंकि बिखरी हुई जनसंख्या का वृहत क्षेत्र शिक्षा से अहूता है। जन-जन तक शिक्षा की ज्योति पहुँचाने हेतु प्रौद्योगिकी की अग्रणी भूमिका है। दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में सूचना सम्प्रेषण तकनीक के अनेक माध्यम है, जो प्रयोग में लाये जाते हैं। जैसे-
रेडियो प्रसारण, दूरदर्शन, श्रृव्य-दृश्य कैसटेस, इलेक्ट्रांनिक डाक, कम्प्यूटर नेटवर्क, फैक्स, टेलीकान्फ्रेन्सिग आदि।
मुक्त विश्वविद्यालयों में सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका स्वतः स्पष्ट होती है क्योंकि रेडियो व टेलीवीजन द्वारा भी इसका क्रियान्वयन होता है। इण्टरनेट का प्रारम्भ सन् 1995 को हुआ। इसके माध्यम से छात्रों को शिक्षण प्रशिक्षण के कार्यक्रम आसानी से सुलभ हो जाते है। ज्ञानदर्शन व ज्ञानवाणी जैसे शैक्षिक चैनल भी इसमें सहायता करते हैै। ज्ञानवाणी 7 नवम्बर 2001 से शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रसारण कर रहा है। इसी प्रकार ज्ञानदर्शन भी जनवरी 2000 से शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रसारण करता है। अनेक शिक्षाविद् व विषय विशेषज्ञ इन कार्यक्रमों की गुणवत्ता को संवद्र्वित करते है तथा समस्याओं का समाधान भी इसी माध्यम से किया जाता है। भारतीय उपग्रह इन्सेट प् ठ की स्थापना भूमध्य रेखा के ऊपर 3600 ज्ञउ की ऊँचाई पर की गई। इसके माध्यम से दूरस्थ शिक्षा के प्रसार में रेडियो, टीवी का भरपूर उपयोग किया जाने लगा है।
27 अक्टूबर 2009 को इग्नू ने तीसरी पीढी (3ळ) की मोबाइल फोन प्रौद्योगिकी के जरिए आॅन लाइन शिक्षा प्रदान करने के लिए स्वीडन की दूर संचार कम्पनी एरिक्सन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये है। अधिकारियों ने बताया कि इग्नू शुरूआत में सूचना प्रौद्योगिकी का सर्टीफिकेट कोर्स कर रहे 1000 छात्रों को 3ळ के जरिए शिक्षा देगा। अगले छः माह के लिए इसे पायलेट परियोजना की तरह चलाया जायेगा। इग्नू ने छः माह बाद पूरे देश में चलाये जा रहे सभी कोर्सो में 3ळ का उपयोग करने की योजना बनाई है।
भारत में प्ब्ज् के उपयोग के क्षेत्र में विशाल भौगोलिक व जनसांख्यिकीय आधार पर असमानता पाई जाती है। भारत में विश्व का सबसे अधिक प्ब्ज् कार्य बल है। इससे एक ओर जहाँ देश में प्रौद्योगिकी उपयोग से बंगलौर और गुड़गाँव जैसे शहरों का विकास व उच्च आय वर्ग की उत्पत्ति हुई है। वहीं दूसरी ओर देश का एक बड़ा हिस्सा टेलीफोन कनेक्टीविटी से भी वंचित है। प्रधानमंत्री जी द्वारा जुलाई 1998 में गठित कार्य दल ने स्कूलों तथा शिक्षा क्षेत्र में प्ज् का उपयोग करने की सिफारिश की थी। दूरस्थ शिक्षा एवं रोजगार प्रदान करने के लिए श्रृव्य-दृष्य एवं उपग्रह आधारित उपकरणों के माध्यम से सूचना व संचार प्रौद्योगिकी के प्रयोग को बढ़ावा देना भी इसमें सम्मिलित है। स्पष्ट है कि जनसंख्या के बढ़ते दबाव में दूरस्थ शिक्षा एक ऐसा विकल्प हो सकता है, जोकि हमारे देश की शिक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। आंकडे़ भी बताते है कि दूरस्थ शिक्षा की भागीदारी निश्चित रूप से सराहनीय है परन्तु शिक्षा के स्तर व आपूर्ति तंत्र में सुधार की महती आवश्यकता है। क्योंकि गुणवत्ता सम्बन्धी चिन्ताएं आय के सापेक्ष गौण हो जाती है। दूर शिक्षा में गुणवत्ता संवर्द्धन हेतु सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका तय करने में भारी निवेश की आवश्यकता है क्योंकि महत्वपूर्ण आयोगों, शिक्षाविद्ों तथा सरकार ने भी प्रौद्योगिकी के प्रयोग पर बल दिया है।
उच्चतर शिक्षा में मुक्त और दूरस्थ शिक्षा का मौजूदा आकार और हिस्सा महत्वपूर्ण है फिर भी जीवनपर्यन्त अधिगम की दृष्टि से यह अत्यन्त छोटा है। विभिन्न इलेक्ट्राॅनिक माध्यमों का शिक्षा शास्त्रीय प्रयोग अभी भी बहुत सीमित है। इसे विस्तृत करने की जरूरत है। यदि सूचना प्रौद्योगिकी के सशक्त माध्यम से जैसे-इण्टरनेट , इलेक्ट्राॅनिक मेल,
फैक्स व टेलीकोफ्रेसिंग का भरपूर प्रयोग किया जाय तो औपचारिक शिक्षा की अपेक्षा दूरस्थ शिक्षा पर व्यय भार भी कम होगा तथा शिक्षा की गम्भीर चुनौतियों का सामना करने में दूरस्थ शिक्षा निश्चित रूप से सक्षम होगी।
दूरस्थ शिक्षा को सफल व सार्वभौमिक बनाने हेतु निम्नांकित सुझाव प्रस्तुत हैं-
1. शिक्षण प्रक्रिया में सूचना प्रौद्योगिकी का भरपूर प्रयोग किया जाय।
2. तहनीकी माध्यमों से ही परीक्षा प्रक्रिया पर बल दिया जाय।
3. जनसंख्या के बढ़ते दबाव को देखते हुए दूरस्थ शिक्षा में भारी निवेश की भी आवश्यकता है।
4. टेलीकांन्फ्रेसिंग का प्रयोग करके शिक्षक-छात्र सम्पर्क पर बल दिया जाय, क्योंकि दूरस्थ शिक्षा का यह बिन्दु सर्वाधिक विचारणीय है।
5. दूरस्थ शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने में श्रृव्य-दृश्य सामग्री को प्रत्येक अधिगमकर्ता के लिए उपलब्ध कराया जाय।
6. उपग्रह सम्प्रेषण द्वारा भी शिक्षण प्रक्रिया को सुलभ बनाया जाय।
7. छात्र-छात्राओं की समस्याओं का इलेक्ट्राॅनिक माध्यमों द्वारा दु्रतगामी समाधान भी किया जाय, जिससे दूरस्थ शिक्षा औपचारिक शिक्षा के सामने गुणवत्ता की कसौटी पर खरी उतरें।
8. दूरस्थ शिक्षा को ’’सूचना प्रौद्योगिकी क्रान्ति’’ द्वारा ’’ज्ञान का विस्फोट’’ जैसी संकल्पना को साकार किया जाय।
Nice post
ReplyDeleteशिक्षा में सूचना एवं संचार तकनीकी की उपयोगिता
सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी क्या है