महात्मा गांधी
की
बुनियादी शिक्षा
वर्धा शिक्षा योजना शैक्षिक
सुधार की एक ऐसी योजना थी, जो
महात्मा गांधी के शैक्षिक विचारों पर आधारित थी। इसे बुनियादी शिक्षा
या नई तालीम के नाम से भी जाना जाता है।
जब वर्धा में बुनियादी शिक्षा का मसौदा बन रहा था तो वहाँ जाकिर
हुसैन, के0टी0 शाह, आचार्य कृपलानी, आशा देवी आदि अनेक लोग मौजूद
थे। बापू ने पूछा, “ केटी, अपने बच्चों के लिए कैसी शिक्षा तैयार कर रहे हैं ?
सब चुप थे। फिर केटी ने पूछा, बापू आप ही बताये ना कैसी शिक्षा हो ?’
बापू ने कहा, ‘केटी, अगर मै किसी कक्षामें जाकर यह पूँछू कि मैने एक
सेब चार आने का खरीदा और उसे एक रुपये में बेच दिया तो मुझे क्या
मिलेगा। मेरे इस प्रश्न के जबाब में अगर पूरी कक्षा यह कह दे कि आपको
जेल की सजा मिलेगी तो मानूँगा कि यह आजाद भारत के बच्चों की सोच
के मुताबिक शिक्षा है।” बापू के इस सवाल पर सब दंग थे। वास्तव में
किसी व्यापारी को यह हक नहीं है कि वह चार आने की चीज पर बारह आने
लाभ कमाये। इस तरह इस प्रश्न के माध्यम से नैतिक शिक्षा का एक संदेश
बापू ने बिना बताये ही दे दिया। अब कौन कह सकता है कि बापू एक
महान संत, दार्शनिक और राष्ट्रीय नेता होने के साथ शिक्षाविद ही थे।
“हमारी बुनियादी शिक्षा पद्धति मस्तिष्क, शरीर और आत्मा तीनों का
विकास करती है। साधारण शिक्षा पद्धति केवल मस्तिष्क के विकास पर ही
बल देती है। नई तालीम कातने और झाड़ू देने तक ही सीमित नहीं है। ये
अति आवश्यक ही क्यों न हो यदि इनसे उक्त तीनों शक्तियों का
सामंजस्ययुक्त विकास नहीं होता तो इसका कोई मूल्य नहीं है।”
- महात्मा गांधी
this is the main purpose of education but unfortunately it is not being imparted.
ReplyDeleteDr vishal Dwivedi