महिला सशक्तीकरण में शिक्षा की भूमिका
प्रत्येक विकसित समाज के निर्माण में स्त्री एवं पुरूष दोनों की सहभागिता आवश्यक है। भावी पीढ़ी के रूप में व्यक्ति से लेकर परिवार, समाज तथा राष्ट्र तक के चहुँमुखी विकास की जिम्मेदारी में पुरुषों के साथ स्त्रियों की अपेक्षाकृत अधिक भागीदारी है। इस भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए ही परिवार की धुरी, महिला का सशक्तीकरण जरूरी है और सशक्तीकरण के लिए शिक्षा।
शिक्षा आर्थिक और सामाजिक सशक्तीकरण के लिए पहला और मूलभूत साधन है। शिक्षा ही वह उपकरण है जिससे महिला समाज में अपनी सशक्त, समान व उपयोगी भूमिका दर्ज करा सकती है। दुनिया के जो भी देश आज समृद्ध और शक्तिशाली हैं, वे शिक्षा के बल पर ही आगे बढ़े हैं। इसलिए आज समाज की आधी आबादी अर्थात महिलाएं जो कि विकास की मुख्य धारा से बाहर है, उन्हे शिक्षित बनाना हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। इस संदर्भ में राधाकृष्णन आयोग ने कहा है- ‘‘ स्त्रियों के शिक्षित हुए बिना किसी समाज के लोग शिक्षित नहीं हो सकते। यदि सामान्य शिक्षा स्त्रियों या पुरूषों मे से किसी एक को देने की विवशता हो, तो यह अवसर स्त्रियों को ही दिया जाना चाहिए, क्योकि ऐसा होने पर निश्चित रूप से वह शिक्षा उनके द्वारा अगली पीढ़ी तक पहुँच जाएगी।’’ इसी प्रकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह बात स्वीकार की गई है कि महिला शिक्षा का महत्व न केवल समानता के लिए, बल्कि सामाजिक विकास की प्रक्रिया को तेज करने के लिए भी जरूरी है।
स्वतंत्रता के बाद सरकार, महिला संगठनों ,महिला आयोगों आदि के प्रयासो से महिलाओं के लिए विकास के द्वार खुले, उनमें शिक्षा का प्रसार बढ़ा जिससे उनमें जागृति आई, आत्मविश्वास उत्पन्न हुआ परिणामस्वरूप वे प्रगतिपथ पर आगे बढ़ी। आज महिलाएं राजनीति, समाजसुधार, शिक्षा, पत्रकारिता, साहित्य, विज्ञान, उद्योग, व्यावसायिक प्रबन्धन, शासन-प्रशासन, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, पुलिस, सेना, कला, संगीत, खेलकूद आदि क्षेत्रों में पुरूषो के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रही हैं । एक ओर यह परिदृश्य अत्यधिक उत्साहवर्धक है परंतु वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य पर दृष्टि डालने से पता चलता है कि आज भी शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति संतोषजनक नहीं है। पूरी दुनिया में स्कूल न जाने वाले 121 मिलियन बच्चों में 65 प्रतिशत लड़किया है। दुनिया के 875 मिलियन निरक्षर वयस्कों में दो तिहाई महिलाएं हैं। इसी प्रकार 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में महिला साक्षरता दर 53.67 प्रतिशत है जिसमें नगरीय क्षेत्र की महिला साक्षरता 72.99 प्रतिशत तथा ग्रामीण क्षेत्र की महिला साक्षरता 46.58 प्रतिशत है अर्थात भारत में लगभग 50 प्रतिशत महिलाएं अभी तक शिक्षा से वंचित हैं। इसी प्रकार प्राथमिक स्तर पर प्रवेश लेने वाली बालिकाओं में से 24.82 प्रतिशत कक्षा 5 तक की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाती और उन्हे विद्यालय छोड़ना पड़ता है। उच्च प्राथमिक स्तर पर 50.76 प्रतिशत बालिकाओं को बीच में ही विद्यालय छोड़ कर घरेलू कार्यों में संलग्न होना पड़ता है। स्कूल का दूर होना, यातायात की अनुपलब्धता, घरेलू काम, छोटे भाई-बहनों की देखरेख, आर्थिक व विभिन्न सामाजिक समस्यायें आदि कुछ ऐसे कारण हैं जो कि बालिका शिक्षा की राह में बाधा उत्पन्न करते हैं।
आज बालिका शिक्षा का प्रसार ग्रामीण क्षेत्रों में करने की महती आवश्यकता है। सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के माध्यम से इस दिशा में निरन्तर प्रयास किए जा रहे हैं। देश की विकासशीलता के परिवेश में विचार करना आवश्यक है कि महिलाओं की शिक्षा किस प्रकार की हो? महिलाओं को मात्र साक्षर न बनाया जाए बल्कि उन्हें ऐसी व्यावसायिक शिक्षा देनी चाहिए जो उन्हे अपने पैरों पर खड़े होने में मददगार सिद्ध हो। यदि महिलाएं शिक्षित होकर आत्मनिर्भर हों सके तो उनको स्वयं का महत्व समझते देर नहीं लगेगी तथा धीरे-धीरे दूसरो की नजरों में भी उनका स्थान महत्वपूर्ण हो जाएगा। शिक्षित, आत्मनिर्भर, सशक्त महिलाओं के द्वारा ही भारत को एक सशक्त व विकसित देश के रूप में निर्माण कर पाना संभव हो सकेगा।
Nyc post
ReplyDeleteIt's nice post n useful also
ReplyDeleteIt's a amazing post about women empowerment
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteVest
ReplyDeletehttp://shikshavimarsh.blogspot.com/2012/11/blog-post_2899.html?m=1
ReplyDeleteDinesh kumat
ReplyDelete20022
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