अपनी ही दुर्दशा देख कर आँखें शर्म से गड़ी जा रही हैं |
विदेशी भाषायें हिन्दुस्तान में बड़े गर्व से पढी जा रही हैं ||
हिंदी अपनी मातृभाषा मात्र एक भाषा बन कर रह गई है |
हिंदी के लिये एक दिवस ! शायद कोई साजिश गढी जा रही है ||
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----------अनिल त्रिवेदी