भगवान श्री परशुराम जन्मोत्सव पर
आप सभी को हार्दिक बधाई ।
आप सभी को हार्दिक बधाई ।
वर्तमान की सारी समस्याओं का एक हल सबल राष्ट्रवाद और प्रभु परशुराम का मार्ग है।
आज दैत्य दानव असुर उग्रवादी बने
उन्हें नष्ट करने का उपचार चाहिये
देशद्रोही देशघात का विचार पालते जो
ध्वस्त कर देना वह कुविचार चाहिये
नायक का रूप ले बने जो खलनायक हैं
करने कुकृत्य उनके भी क्षार चाहिये
शान्ति का प्रयास न सुधार सकता उन्हें है
उनको परशुराम का कुठार चाहिये
*
सुकृत परशुराम के ये शिक्षा दे रहे हैं
निबल समस्या कर हल सकते नहीं
राग भरे बाग़ को उजाड़ते हों दैत्य जहाँ
वहाँ मनचाहे फल फल सकते नहीं
अभिराम नमित विनयमात्र से कभी भी
हिंसकों के हृदय बदल सकते नहीं
शक्ति के प्रयास जहाँ भ्रान्ति में दबाये जांय
शान्ति के प्रयास वहाँ चल सकते नहीं
*
आज महावीर-बुद्ध-गांधी का है आया युग
सारा वातावरण तो शुद्ध होना चाहिये
घात-प्रतिघात-अपघात के न हों कुकृत्य
सबका ही हृदय प्रबुद्ध होना चाहिये
कोई राष्ट्र पर छद्म आक्रमण करे तब
शौर्य का न वेग अवरुद्ध होना चाहिये
युद्ध ललकार बार-बार जो लगाये शत्रु
उससे अवश्यमेव युध्द होना चाहिये
*
करते अधर्म का न नाश यदि भृगुनाथ
फिर धराधाम पर धर्म बच पाता क्यों
राम न धनुषबाण शत्रु पे उठाते फिर
शासन-प्रशासन में रामराज्य आता क्यों
कृष्ण शक्ति चक्र न चलाते निज चक्र का तो
पापियों का विभव रसातल में जाता क्यों
होते न असंख्य बलिदानियों के बलिदान
भारत तो अपना स्वतन्त्र कहलाता क्यों
*
शांतिभावना है श्रेष्ठ किन्तु भ्रांतिपूर्ण नहीं
होनी विश्व में भी शांति अविराम चाहिये
रामधुन से न नरपशु हिंसा शांत होगी
रामधनु वाले उन्हें परिणाम चाहिये
फूल को सुमन बढ़े, शूल को भ्रकुटि चढ़े
शठता का शठता से इंतकाम चाहिये
एक हाथ कुश, एक हाथ में परशु धारे
होना राष्ट्रपुरुष परशुराम चाहिये-
---------- राष्ट्रकवि डॉ. ब्रजेंद्र अवस्थी,*
उन्हें नष्ट करने का उपचार चाहिये
देशद्रोही देशघात का विचार पालते जो
ध्वस्त कर देना वह कुविचार चाहिये
नायक का रूप ले बने जो खलनायक हैं
करने कुकृत्य उनके भी क्षार चाहिये
शान्ति का प्रयास न सुधार सकता उन्हें है
उनको परशुराम का कुठार चाहिये
*
सुकृत परशुराम के ये शिक्षा दे रहे हैं
निबल समस्या कर हल सकते नहीं
राग भरे बाग़ को उजाड़ते हों दैत्य जहाँ
वहाँ मनचाहे फल फल सकते नहीं
अभिराम नमित विनयमात्र से कभी भी
हिंसकों के हृदय बदल सकते नहीं
शक्ति के प्रयास जहाँ भ्रान्ति में दबाये जांय
शान्ति के प्रयास वहाँ चल सकते नहीं
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आज महावीर-बुद्ध-गांधी का है आया युग
सारा वातावरण तो शुद्ध होना चाहिये
घात-प्रतिघात-अपघात के न हों कुकृत्य
सबका ही हृदय प्रबुद्ध होना चाहिये
कोई राष्ट्र पर छद्म आक्रमण करे तब
शौर्य का न वेग अवरुद्ध होना चाहिये
युद्ध ललकार बार-बार जो लगाये शत्रु
उससे अवश्यमेव युध्द होना चाहिये
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करते अधर्म का न नाश यदि भृगुनाथ
फिर धराधाम पर धर्म बच पाता क्यों
राम न धनुषबाण शत्रु पे उठाते फिर
शासन-प्रशासन में रामराज्य आता क्यों
कृष्ण शक्ति चक्र न चलाते निज चक्र का तो
पापियों का विभव रसातल में जाता क्यों
होते न असंख्य बलिदानियों के बलिदान
भारत तो अपना स्वतन्त्र कहलाता क्यों
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शांतिभावना है श्रेष्ठ किन्तु भ्रांतिपूर्ण नहीं
होनी विश्व में भी शांति अविराम चाहिये
रामधुन से न नरपशु हिंसा शांत होगी
रामधनु वाले उन्हें परिणाम चाहिये
फूल को सुमन बढ़े, शूल को भ्रकुटि चढ़े
शठता का शठता से इंतकाम चाहिये
एक हाथ कुश, एक हाथ में परशु धारे
होना राष्ट्रपुरुष परशुराम चाहिये-
---------- राष्ट्रकवि डॉ. ब्रजेंद्र अवस्थी,*