अच्छा बनने का कोई इरादा नहीं
हम बुरे हैं अगर तो बुरे ही भले
अच्छा बनने का कोई इरादा नहीं
साथ लिखा है तो साथ निभ जायेगा
अब निभाने का कोई वादा नहीं
क्या सही, क्या गलत, सोच का फ़ेर है
एक नजरिया है जो बदलता भी है
एक सिक्के के दो पहलुओ की तरह
फ़र्क सच या झूठ में ज्यादा नहीं
रुह का रुख इधर, जिस्म का रुख उधर
अब ये दोनो मिले तो किस तरह
रुह से जिस्म तक, जिस्म से रुह तक
रास्ता एक भी सीधा सादा नही
कुछ भी समझे, समझता रहे ये जहां
अपने जीने का अपना ही अन्दाज है
हम भले या बुरॆ जो भी है, वो ही है
हमने ओढा है कोई लबादा नहीं
जिंदगी अब तू ही कर कोई फैसला
अपनी शर्तो पर जीने की क्या है सजा
तेरे हर रुप को हौसले से जिया
पर कभी बोझ सा तुझको लादा नहीं
हम बुरे हैं अगर तो बुरे ही भले
अच्छा बनने का कोई इरादा नहीं
---- दीप्ति मिश्रा