Wednesday, February 10, 2016



  

       शिक्षा कौशल विकास के निहितार्थ  

     

 

        शिक्षा कौशल विकास के निहितार्थ            


                                  -डा0 मनोज मिश्र
                                                         

              किसी भी देश के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए कौशल और ज्ञान दो प्रेरक बल हैं। वर्तमान वैश्विक माहौल में उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुख्य चुनौती से निपटने में वे देश आगे हैं जिन्होंने कौशल का उच्च स्तर प्राप्त कर लिया है। किसी भी देश में कौशल विकास कार्यक्रम के लिए मुख्य रूप से युवाओं पर ही जोर होता है। इस मामले में हमारा देश अच्छी स्थिति में है। जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा उत्पादक आयु समूह में है। यह भारत को सुनहरा अवसर प्रदान करता है] परंतु एक बड़ी चुनौती भी पेश करता है। हमारी अर्थव्यवस्था को इसका लाभ तभी मिलेगा जब हमारी जनसंख्या विशेषकर युवा स्वस्थ, शिक्षित और कुशल होगी। भारत के पास एक अतुलनीय युवा जनसंख्या है जिससे आने वाले समय में सामाजिक-आर्थिक विकास को जोरदार बढ़ावा मिलना तय है। हमारे पास 60]5 करोड़ लोग 25 वर्ष से कम आयु के हैं। रोजगार के लिए उपयुक्त कौशल प्राप्त करके ये युवा परिवर्तन के प्रतिनिधि हो सकते हैं। वे न केवल अपने जीवन को प्रभावित करने के काबिल होंगे] बल्कि दूसरों के जीवन में भी बदलाव ला सकेंगे।
            आज शिक्षा प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए जिससे छात्रों में आधारभूत क्षमता, योग्यता और कौशलों का विकास किया जा सके। आज शिक्षा को सैद्धांतिक पाठ्यक्रमों के दलदल से निकालकर मजबूत व्यावसायिक आधार प्रदान करने की नितांत आवश्यकता है। आज वर्तमान शिक्षा में जो महत्वपूर्ण परिवर्तन हो रहे हैं, उसमे तकनीकी और रोजगारपरक शिक्षा का प्रसार और विस्तार प्रमुख है। वास्तव में किसी भी राष्ट्र के प्रगति में व्यावसायिक शिक्षा का बहुत योगदान होता है। आधुनिक युग में कोई भी राष्ट्र व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा के बिना विकसित राष्ट्र नहीं बन सकता। इस संदर्भ में पूर्व राष्ट्रपति ए0 पी0 जे0 अब्दुल कलाम का यह विचार अत्यधिक प्रासंगिक हैं-] किसी भी राष्ट्र की खुशहाली और प्रगति तकनीकी और रोजगारपरक शिक्षा की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। भारत एक विकासशील देश है। गरीबी और बेरोजगारी इसकी प्रगति में सबसे बड़ी बाधा है। भारत में पर्याप्त मानवीय शक्ति है, तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के द्वारा इस शक्ति का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है।’’ स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात से ही भारत सरकार द्वारा इस दिशा में विशेष ध्यान दिया जा रहा है। विभिन्न शिक्षा आयोगों तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीतियों की अनुशंसाओ के आधार पर विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओ में तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के द्वारा जनशक्ति को संसाधन के रूप में विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है। इस हेतु देश के विभिन्न भागों में तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा संस्थाओ की स्थापना की गई है। व्यावसायिक शिक्षा के प्रचार व प्रसार हेतु सरकार द्वारा शिक्षा के द्वार निजी क्षेत्रो के लिए खोल दिए गए हैं। जिसके कारण आज देश भर में व्यावसायिक शिक्षण संस्थाओ की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। जो कि व्यावसायिक शिक्षा की दिशा में राष्ट्र की महत्वपूर्ण पहल है। लेकिन आज इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही है कि शिक्षा प्रणाली कुशल और रोजगार के लिए तैयार जनशक्ति का निर्माण करने की अपनी भूमिका ठीक से नहीं निभा रही है जिसके कारण कौशल सम्बन्धी बाजार की आवश्यकताओं और रोजगार चाहने वालो के कौशल के बीच खाई बढ़ती जा रही है। ज्ञान आयोग के अनुसार- भारत के 57 प्रतिशत युवा रोजगार पाने की योग्यता नही रखते। यह तथ्य हमारी शिक्षा के निम्न गुणवत्ता स्तर को प्रदर्शित करता है। 
कौशल विकास के लिए सरकारी प्रयास-
          सम्पूर्ण विश्व में उदारीकरण व वैश्वीकरण के कारण आए बदलावों को देखते हुए भारत में भी सन् 1991 से निजीकरण, आर्थिक उदारीकरण व वैश्वीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गयी है जिससे भारतीय शिक्षा के स्वरूप और उसकी जरूरतों में परिवर्तन दृष्टिगत हो रहा है है। इसे ध्यान में रखते हुए सन् 2009 में तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने अपने मंत्रालय का एजेंडा पेश करते हुए शिक्षा के विस्तार] निवेश और गुणवत्ता को अपना मूल मंत्र बताया। शिक्षा के विस्तार के साथ ही तकनीकी शिक्षा और कौशल विकास को प्रमुख लक्ष्य माना गया। इस हेतु 11वीं पंचवर्षीय योजना में 8 नये आई0आई0एम0 और 8 आई0आई0टी0खोलने की घोषणा की गई। इसके अतिरिक्त कौशल विकास मिशन के लिए 495 करोड़ रूपये आवंटित किए गए ताकि पालीटेक्नीकों को अपग्रेड किया जा सके। साथ ही शिक्षा को सूचना] संचार एवं प्रौद्योगिकी से जोड़ने की बात की गई। वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा भी इस संदर्भ में गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं। केंद्र सरकार ने पिछले एक साल में एक दर्जन राष्ट्रीय स्तर की महत्वाकांक्षी योजनाएं शुरू की हैं- स्किल इंडिया] मेक इन इंडिया] स्मार्ट सिटी, डिजिटल इंडिया] स्वच्छ भारत] प्रधानमंत्री जन धन योजना आदि। वर्ष 2015&16 का बजट सदन में प्रस्तुत करते हुए वित मंत्री श्री अरूण जेटली ने कहा कि भारत विश्व के सर्वाधिक युवा राष्ट्रों में से एक है। आज आवश्यकता है कि हमारे युवा 21वीं शताब्दी की नौकरियों के लिए शिक्षित और रोजगार पर रखे जाने के योग्य हों। यह सुनिश्चित करने के लिए कि हमारे युवाओं को उचित रोजगार प्राप्त हो, हमे भारत को दुनिया का विनिर्माण केंद्र बनाने के उद्देश्य को लेकर चलना होगा। स्किल इंडिया और मेक इन इंडिया] कार्यक्रम इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए बनाए गए हैं। मेक इन इंडिया योजना से अधिकाधिक रोजगार सृजन करने के प्रयासों को गति देने के लिए दो महत्वपूर्ण फैसले लिए गए हैं। प्रथम स्किल इंडिया परियोजना जिसके तहत युवाओं को विभिन्न कौशल सिखलाए जाएंगे और द्वितीय फैसला इस काम को अंजाम देने के लिए कौशल उन्नयन और नवोन्मेष का एक नया मंत्रालय गठित करने का है। ‘स्किल इंडिया’ और ‘मेक इन इंडिया कार्यक्रम के साथ ही ग्रामीण छात्रों में रोजगारपरक योग्यता का विकास करने के लिए दीनदयाल उपाध्याय कौशल उन्नयन योजना व सेतु (स्वरोजगार और प्रतिभा का उपयोग] परियोजना की भी शुरूआत की है। हाल में ही मंजूर की गई स्किल इंडिया] केंद्र सरकार का एक बड़ा मिशन है। रोजगारपरक कौशल विकास का यह महा अभियान प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना एक साथ 101 शहरों में शुरु होने जा रही है। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई युवाओं के कौशल प्रशिक्षण के लिए एक प्रमुख योजना है। इसके तहत पाठ्यक्रमों में सुधार बेहतर शिक्षण और प्रशिक्षित शिक्षकों पर विशेष जोर दिया गया है। प्रशिक्षण में अन्य पहलुओं के साथ व्यवहार कुशलता और व्यवहार में परिवर्तन भी शामिल है। नवगठित कौशल विकास और उद्यम मंत्रालय राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी] के माध्यम से इस कार्यक्रम को क्रियान्वित कर रहा है। इसके तहत 24 लाख युवाओं को प्रशिक्षण के दायरे में लाया जाएगा है। कौशल प्रशिक्षण नेशनल स्किल क्वालिफिकेशन फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएफ] और उद्योग द्वारा तय मानदंडों पर आधारित होगा। कौशल प्रशिक्षण एनएसडीसी द्वारा हाल ही में संचालित कौशल अंतर अध्ययनों के जरिए मांग के आकलन के आधार पर दिया जाएगा। केन्द्र और राज्य सरकारों, उद्योग और व्यावसायिक घरानों से विचार विमर्श कर भविष्य की मांग का आकलन किया जाएगा। इसके लिए एक मांग समूहक मंच भी शुरू किया जा रहा है। कौशल विकास के लक्ष्य निर्धारित करते समय हाल में ही लागू किये गए प्रमुख कार्यक्रम जैसे मेक इन इंडिया] डिजिटल इंडिया] राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन और स्वच्छ भारत अभियान की मांगों को भी ध्यान में रखा जाएगा। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत मुख्य रूप से श्रम बाजार में पहली बार प्रवेश कर रहे लोगों पर जोर होगा और विशेषकर कक्षा 10 व 12 के दौरान स्कूल छोड़ गये छात्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन के तहत तीन संस्थान कार्य कर रहे हैं। राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कौशल विकास प्रयासों को नीतिगत दिशा दे रही है और इनकी समीक्षा भी कर रही है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में राष्ट्रीय कौशल विकास समन्वय प्रधानमंत्री की परिषद के नियमों को लागू करने के लिए रणनीतियों पर कार्य कर रहा है। एनएसडीसी एक गैर-लाभ कंपनी है और गैर संगठित क्षेत्र समेत श्रम बाजार के लिए कौशल प्रशिक्षण की जरुरतों को पूरा कर रही है।
कौशल विकास की कठिन चुनौतियां-
चालीस करोड़ भारतीय युवाओं को हुनरमंद बनाने की महत्वाकांक्षी योजना देश का भाग्य बदल सकती है। इस सिलसिले में हमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कथन पर ध्यान देना होगा कि यदि चीन दुनिया की फैक्टरी बन सकता है, तो भारत विश्व में मानव संसाधन प्रदान करने वाली धुरी क्यों नही बन सकता? यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि पिछले एक दशक से देश में डेमोग्राफिक डिविडेंड’ का हल्ला-गुल्ला चल रहा है। यह सही है कि वर्ष 2030 में विकसित देशों में पांच करोड़ नौकरियों के लिए युवा शक्ति की कमी होगी और भारत में पांच करोड़ युवा नौकरियां ढूंढ़ रहे होंगे। हमारे लिए यह कल्पना करना सुखद और आसान है कि 2030 में पांच करोड़ भारतीय युवा पश्चिमी देशों में जाकर बस जाएंगे और वहां की नौकरियां उन्हें मिल जाएंगी। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 2030 में पश्चिमी देशों को अप्रशिक्षित भारतीय युवा मजदूरों की जरूरत न होकर विशिष्ट हुनर वाले ऐसे युवा श्रमिकों की जरूरत होगी] जो विदेशी भाषा] संस्कृति एवं जलवायु में काम करने में सक्षम हों। वर्तमान केंद्र सरकार ने एक अच्छा काम यह किया है कि विभिन्न मंत्रालयों में चल रही बहुत सारी कौशल विकास योजनाओं को कौशल विकास मंत्रालय के अंतर्गत लाकर बिखराव को खत्म कर दिया है। हाल में ही प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना] कौशल ऋण योजना और कौशल विकास व उद्यमिता पर राष्ट्रीय नीति की घोषणा कर सरकार ने यह एहसास कराया है कि आने वाले दशक में भारत में कौशल विकास पर फोकस बनेगा। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू की गई कौशल विकास योजना का एक प्रमुख अंग है आईआईटी] आईआईएम] केंद्रीय विश्वविद्यालयों व अन्य 40 हजार उच्च शिक्षण संस्थानों में एक से छह माह के तकनीशियन एवं वोकेशनल कोर्स चलाया जाना। इन संस्थानों के पड़ोस के उद्योगों का सहयोग भी इन कोर्स के लिए जुटाया जाएगा। इसके अलावा कौशल विकास के प्रशिक्षण के लिए पांच हजार रुपये से लेकर डेढ़ लाख रुपये तक के कर्ज भी दिए जाएंगे। अनुमान है कि 2022 तक अर्थव्यवस्था के 24 सेक्टरों में 11 करोड़ अतिरिक्त जनशक्ति की जरूरत होगी। रिटेल] रीयल एस्टेट] परिवहन] स्वास्थ्य और ब्यूटी पार्लर से जुड़े क्षेत्रों में सबसे ज्यादा रोजगार पैदा होंगे। पर यह भी एक कटु यथार्थ है कि कृषि क्षेत्र से 25 करोड़ लोग गैर-कृषि रोजगार पाने के लिए गांवों को छोड़ने को मजबूर हो जाएंगे। अगर इन 25 करोड़ ग्रामीण युवाओं को समय रहते हुनरमंद और रोजगार-योग्य नहीं बनाया गया तो हम एक बड़ी सामाजिक अस्थिरता और उथल-पुथल को पैदा करने के जिम्मेदार होंगे।
           केंद्र सरकार ने पिछले एक साल में राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न महत्वाकांक्षी योजनाएं शुरू की हैं- स्किल इंडिया] मेक इन इंडिया] स्मार्ट सिटी] डिजिटल इंडिया] प्रधानमंत्री जन धन योजना, राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन और स्वच्छ भारत अभियान आदि। इन योजनाओं की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि कितनी जल्दी हम भारतीय युवाओं को भविष्य में पैदा होने वाली नौकरियों के लिए प्रशिक्षित कर पाते हैं। फिलहाल भारत के श्रमिकों में सिर्फ 35 प्रतिशत किसी खास कौशल में प्रशिक्षित हैं] जबकि चीन में 46 जर्मनी में 74 और कोरिया में 96 प्रतिशत श्रमिक प्रशिक्षित होते हैं। इन देशों में पिछले 50-60 वर्षों में सरकार व उद्योगों के प्रयास से ही वहां की श्रम शक्ति हुनरमंद बनी है। पर क्या हम 2022 तक एक-तिहाई श्रमशक्ति को प्रशिक्षित व हुनरमंद बना पाएंगे सात साल में 40 करोड़ युवाओं को हुनरमंद बनाना असंभव नहीं] किंतु चुनौतीपूर्ण जरूर है।
 शिक्षा और कौशल विकास -
                   शिक्षा व्यक्तित्व के विकास और रोजगार के लिए ही जरूरी नहीं बल्कि वह राष्ट्र के सांस्कृतिक निर्माण के लिए भी आवश्यक है। नई आर्थिक नीति के बाद शिक्षा को देश के आर्थिक विकास के महत्वपूर्ण कारक के रूप में भी देखा जाने लगा है। इस दृष्टि से केंद्र सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में पिछले कुछ सालों में व्यापक सुधार के साथ-साथ कौशल विकास पर जोर देना भी प्रारंभ कर दिया था।  अमेरिका] चीन] जापान] जर्मनी] फ्रांस] कोरिया जैसे अनेक राष्ट्रों के आर्थिक विकास में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है।
          अभी तक शिक्षा का मूल उद्देश्य था कि शिक्षा बेहतर मनुष्य का निर्माण करे। उसका उद्देश्य राष्ट्रीय और सामाजिक मूल्यों से जुड़ा था। पर अब इसके बिंदु बदल गए हैं। इसके कई कारण हैं। पहला कि आर्थिक वृद्धि में सबकी सहभागिता हो, इसलिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को शिक्षित करना] रोजगार लायक कौशल] दक्षता और क्षमता विकसित कर रोजगार मुहैया कराना। दूसरा] घरेलू बाजार और उद्योगों की जरूरतों के मद्देनजर लोगों को शिक्षित करना। तीसरा, 2020 तक वैश्विक स्तर पर दक्ष] कुशल और प्रशिक्षित युवाओं की मांग को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय बाजार में निवेश करना। चैथा शिक्षा और शिक्षण संस्थाओं को उद्योग के लायक बनाना ताकि वे आर्थिक हितों की पूर्ति कर सकें। पांचवा, भारतीय विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षण संस्थाओं को वैश्विक पहचान दिलाना, ताकि विदेशी छात्रों को आकर्षित किया जा सके। छठा विदेशों की तरफ आकर्षित छात्रों को भारतीय संस्थानों में ही रोकना] ताकि भारतीय मुद्रा का प्रवाह रुक सके। कहना न होगा] सरकार का उद्देश्य बाजार की मांग और शर्तों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा को रोजगारोन्मुखी बनाना है। इसलिए जरूरी है कि शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन किए जाएं। न सिर्फ बाहरी आधारभूत संरचना को, बल्कि भीतरी स्तर पर विभिन्न अनुशासनों] विषयों को भी बदला जाए। बाजार, उद्योग, कॉरपोरेट जगत और समाज की जरूरतों के हिसाब से नए विषय जोड़े जाएं और नई अध्ययन सामग्री तैयार की जाए। परंपरागत रूप से पढ़ाए जा रहे विषयों को भी तकनीकी से जोड़ा जाए, ताकि दक्ष और कुशल छात्र तैयार हों।
             भारत में भी केंद्र सरकार ने हाल के वर्षों में शिक्षा की इस भूमिका को रेखांकित करने के अपनी योजनाएं और कार्यक्रम शुरू किए हैं। तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल इस बारे में बार-बार कहते थे कि शिक्षा राष्ट्र की संपदा के सृजन का भी एक महत्वपूर्ण पायदान है और मानव संसाधन भी एक तरह की पूंजी है जिसका इस्तेमाल कर देश को समृद्ध एवं खुशहाल बनाया जा सकता है। शिक्षा का अधिकार कानून] राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा मिशन] राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा मिशन जैसे कार्यक्रमों को लागू करने शोध एवं अनुसंधान को बढ़ावा देने] शिक्षा की गुणवत्ता में सुधान लाने एवं शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए सरकार को बजट में अधिक धन आवंटित करना चाहिए। तभी हम शिक्षा का विस्तार और विकास कर सकेंगे तथा कौशल विकास के वांछित लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे।
              आज भारत ने विश्व में सबसे तेजी से विकास कर रही अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी पहचान बना ली है। उम्मीद है कि भारत शीघ्र ही विश्व की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो जाएगा। वर्ष 2020 तक भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा विनिर्माण केन्द्र भी बन जाएगा। जनसंख्या के सकारात्मक कारकों और उच्च गुणवत्ता वाले कार्यबल की सतत उपलब्धता की मदद से हमारा देश विश्व अर्थव्यवस्था में विशेष छाप छोड़ सकता है। भविष्य के बाजारों के लिए कौशल विकास से लेकर मानव संसाधन विकसित करने के लिए हाल में ही घोषित स्किल इंडिया और मेक इन इंडिया  से अवश्य ही हमारी अर्थव्यवस्था को पूर्ण लाभ मिलेगा। नई नीति के तहत मिशन के तौर पर लागू की गई इस योजना से मानव संसाधन और उद्योग के विकास में एक नए युग की शुरुआत होगी  और आर्थिक रूप से सुदृढ़ व समृद्ध भारत का सपना साकार करने का मार्ग प्रशस्त होगा।
संदर्भ सूत्र-
1- भारतीय आघुनिक शिक्षा (त्रैमासिक एन0सी0ई0आर0टी0 नयी दिल्ली अंक जुलाई-अक्टूबर 2007
2-  योजना (मासिक प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय  नयी दिल्ली अक्टूबर, 2005
3-  योजना (मासिक सितम्बर 2009
4-  योजना (मासिक अगस्त 2015
5-  कुरूक्षेत्र (मासिक प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रसारण मंत्रालय नयी दिल्ली अप्रैल  2015
6-  सिंह कर्ण भारत में शिक्षा प्रणाली का विकास गोविन्द प्रकाशन लखीमपुर खीरी 2008
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