Friday, May 17, 2019



सुनो तथागत!


   ------ कवि ज्ञान प्रकाश आकुल जी
सुनो तथागत!
इस पीड़ा का सही सही उच्चारण क्या है?
जग के दु: का कारण तृष्णा
मेरे दुःख का कारण क्या है?
तुमने युग का हर हल खोजा
लेकिन नया सवाल खड़ा है,
बुद्ध तुम्हारे जैसा चेहरा
लेकर अंगुलि माल खड़ा है,
तुम्ही बताओ दो चेहरों को
अलग अलग कैसे पहचानूं
हर दोहरे चरित्र में आखिर
क्या विशेष साधारण क्या है?
मैं भटका हूँ उपदेशों से
केवल अब तक मौन बचा है,
बाहर से तन समाधिस्थ है
भीतर अंतर्द्वंद्व मचा है,
देख देख युग की विपदायें
शान्ति क्रान्ति में बदल रही है
अगर क्रान्ति से सुलग उठे मन
तो फिर कहो निवारण क्या है?
अपना दीप बनाया खुद को
किंतु हवाओं से उलझा हूँ,
हे अमिताभ! तुम्हीं कुछ बोलो
जिज्ञासाओं से उलझा हूँ,
क्रान्ति शान्ति से कैसे आये
कई बार मैं सोच चुका हूँ,
परिवर्तन की जटिल प्रक्रिया
का सम्यक् निर्धारण क्या है?
    ------- आकुल



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