मैने कहाँ मांगा था
मैंने कहाँ मांगा था सारा आसमा,
दो-चार तारे बहुत थे मेरे लिये,
दो-चार तारे भी नहीं मिले तो क्या…
चाँद की चाँदनी तो मेरे साथ है।
मैने नहीं माँगा था कभी इन्द्रधनुष,
जीवन में कुछ रंग होते बहुत था,
दो रंग भी नहीं मिले तो क्या..
श्वेंत-श्याम ही बहुत हैं मेरे लिये।
मैंने नहीं चाहा था महल हो कोई,
एक घर मेरा भी होता आशियाँ,
पर वो भी नहीं मिला तो क्या…
ये जर्जर झोंपडी तो मेरे पास है।
मैने कहाँ मांगे थे कभी नौरतन,
चाँदी की पायल ही मुझे थी पसन्द,
वो भी नहीं मिल सकी कभी तो क्या,
पीतल की वो अंगूठी तो मेरे पास है।
मैंने नहीं चाहा था फूलों का हार हो,
दो फूल चमेली के बहुत थे मेरे लिये,
चम्पा चमेली भी नहीं मिले तो क्या,
काँटे गुलाब के तो मेरे पास हैं।
हर श्रमिक की है ऐसी ही दास्ताँ,
आधा अधूरा खाना, फिर चैन से सोना,
गुदगुदे बिस्तर नहीं भी हैं तो क्या…
एक पुरानी चटाई तो उसके पास है।
------------- बीनू भटनागर
मैंने कहाँ मांगा था सारा आसमा,
दो-चार तारे बहुत थे मेरे लिये,
दो-चार तारे भी नहीं मिले तो क्या…
चाँद की चाँदनी तो मेरे साथ है।
मैने नहीं माँगा था कभी इन्द्रधनुष,
जीवन में कुछ रंग होते बहुत था,
दो रंग भी नहीं मिले तो क्या..
श्वेंत-श्याम ही बहुत हैं मेरे लिये।
मैंने नहीं चाहा था महल हो कोई,
एक घर मेरा भी होता आशियाँ,
पर वो भी नहीं मिला तो क्या…
ये जर्जर झोंपडी तो मेरे पास है।
मैने कहाँ मांगे थे कभी नौरतन,
चाँदी की पायल ही मुझे थी पसन्द,
वो भी नहीं मिल सकी कभी तो क्या,
पीतल की वो अंगूठी तो मेरे पास है।
मैंने नहीं चाहा था फूलों का हार हो,
दो फूल चमेली के बहुत थे मेरे लिये,
चम्पा चमेली भी नहीं मिले तो क्या,
काँटे गुलाब के तो मेरे पास हैं।
हर श्रमिक की है ऐसी ही दास्ताँ,
आधा अधूरा खाना, फिर चैन से सोना,
गुदगुदे बिस्तर नहीं भी हैं तो क्या…
एक पुरानी चटाई तो उसके पास है।
------------- बीनू भटनागर
No comments:
Post a Comment