Monday, December 30, 2013

नए वर्ष में...



         नए वर्ष में...


नए वर्ष में अब निराशा नहीं हो

युवा-स्वप्न हरती हताशा नहीं हो

जो दिलों बीच खाई को चौड़ा करे

ऐसी सियासत की भाषा नहीं हो

चुनावों में अबकी वहीं पर विजय हो

जहाँ 'लोक' का भय, वचन में विनय हो

नियम के लिए मानसम्मान मन में

कहीं बाहुबल का तमाशा नहीं हो


कोई साँस कम्पित ठिठुरती हुई सी

खुले आसमां में सिकुडती हुई सी

रुके हारकर और रोये गगन भी

इतना सड़क पर कुहासा नहीं हो

कोई सत्य को क्षीण दुर्बल न समझे

इसे छोड़ना हार का हल न समझे

ईमान रखकर बढ़े कर्मपथ पर

बुरे कर्म से जय की आशा नहीं हो

बहे हर नदी जमके लहरें उठाती


तटों से मगर दोस्ती हो निभाती

ह्रदय जी उठे शुभ्र 'भागीरथी' सा

कोई भी नदी 'कर्मनाशा' नहीं हो

नए वर्ष में अब हताशा नहीं हो


युवा-स्वप्न हरती निराशा नहीं हो
         
                
                   ............. संस्कृता मिश्रा 

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