Tuesday, February 4, 2014

वर दे, वीणावादिनि वर दे !

वर दे, वीणावादिनि वर दे !

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी
 के जन्मदिवस पर
 उनको कोटि-कोटि नमन
एवं श्रद्धांजलि

सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" जिनका निश्चित तिथि के 

अभाव में जन्मदिवस वसन्त पंचमी के दिन मनाया जाता है,

 के लिखे इस नवगीत से माँ सरस्वती के चरणों में 

श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ...



वर दे, वीणावादिनि वर दे !

प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे !

काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे !

नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे !

वर दे, वीणावादिनि वर दे।
--रचनाकार: सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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