Tuesday, February 4, 2014

आयो-आयो रे बसंत

आयो-आयो रे बसंत


              ----- शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

बसंत पंचमी पर हार्दिक शुभकामनाएं



पीत पीत हुए पात 


सिकुड़ी-सिकुड़ी सी रात


ठिठुरन का अन्त आ गया


देखो बसन्त आ गया।

मादक सुगन्ध से भरी 

पन्थ पन्थ आम्र मंजरी

कोयलिया कूक कूक कर

इतराती फिरस बबरी

जाती है जहाँ दृष्टि

मनहारी सकल सृष्टि

लास्य दिग्दिगन्त छा गया

देखो बसन्त आ गया।


शीशम के तारुण्य का

आलिंगन करती लता

रस का अनुरागी भ्रमर

कलियों का पूछता पता

सिमटी सी खड़ी भला

सकुचायी शकुन्तला

मानो दुष्यन्त आ गया

देखो बसन्त आ गया।


पर्वत का ऊँचा शिखर

ओढ़े है किंशुकी सुमन

सरसों के फूलों भरा

मादक बासन्ती उपवन

करने कामाग्नि दहन

केशरिया वस्त्र पहन

मानों कोई सन्त आ गया

देखो बसन्त आ गया।।

--रचनाकार: शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

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