जांबाज लड़ाकों के सर अपने नहीं होते।
बरबाद यूं दीवारो दर अपने नहीं होते।
कुछ लोग लुटेरों में गर अपने नहीं होते।
ये जिंदगी जीते हैं हम उनके लिए जिनको।
हम अपना समझते हैं, पर अपने नहीं होते।
घर अपने कई होंगे कोठों की तरह लेकिन।
कोठों के मुकद्दर में घर अपने नहीं होते।
महदूद उड़ानों में उड़ लेना और उतर आना।
पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते।
आती है सदा अक्सर सरहद की चटानों से।
जांबाज लड़ाकों के सर अपने नहीं होते।
कुछ लोग लुटेरों में गर अपने नहीं होते।
ये जिंदगी जीते हैं हम उनके लिए जिनको।
हम अपना समझते हैं, पर अपने नहीं होते।
घर अपने कई होंगे कोठों की तरह लेकिन।
कोठों के मुकद्दर में घर अपने नहीं होते।
महदूद उड़ानों में उड़ लेना और उतर आना।
पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते।
आती है सदा अक्सर सरहद की चटानों से।
जांबाज लड़ाकों के सर अपने नहीं होते।
---------रचनाकार -अज्ञात
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