लोक संस्कृति, लोक विश्वास, ग्रामीण प्रकृति परिवेश व ग्राम जीवन को प्रतिबिंबित करने वाले माँ वाणी के इस कुशल आराधक एवं राष्ट्रीय जनजागरण के कवि पं. बंशीधर शुक्ल की जयंती ( वसंत पंचमी 1904 ) पर उनको सादर शत-शत नमन ।
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हिंदी साहित्य के चमकते सितारे कवि
पं. बंशीधर शुक्ल का जन्म उत्तर प्रदेश में लखीमपुर जिले के मन्यौरा गाँव में सन 1904 में हुआ था। माँ सरस्वती के जन्म दिवस बसंत पंचमी के दिन एक कृषक परिवार में जन्म लेने वाले वंशीधर नें माता सरस्वती की साधना को ही अपना लक्ष्य बना लिया। इनके पिता पं॰ छेदीलाल शुक्ल सीधे-सादे सरल ह्रदय के किसान थे जो अच्छे अल्हैत के रूप में विख्यात थे और आसपास के क्षेत्र में उन्हें आल्हा गायन के लिए बुलाया जाता था। वे नन्हें बंशीधर को भी अपने साथ ले जाया करते थे। पिता द्वारा ओजपूर्ण शैली में गाये जाने वाले आल्हा को बंशीधर मंत्रमुग्ध होकर सुना करते थे। सामाजिक सरोकारों से बंशीधर के लगाव के पीछे उनके बचपन के परिवेश का बहुत बड़ा हाथ था। सन 1919 में पं॰ छेदीलाल चल बसेे। पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ अब वंशीधर के सर पर था। यह उनके लिए बड़े संघर्षों का समय थाे। इन्हीं संघर्षों से उनके व्यक्तित्व में जीवटता और अलमस्ती पैदा हुई। इसी समय की कठिनाईयों ने उनमें व्यवस्था के प्रति विद्रोही स्वर पैदा किया। सन 1925 के करीब वे गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आयेे। विद्यार्थी जी के सानिध्य में उन पर स्वतंत्रता-आंदोलन का रंग गहराने लगा और कविता की धार भी पैनी होती चली गयी। उन्होंने मातृभूमि की सेवा करते हुए स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया और अनेक बार जेल की यात्रा की।
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वंशीधर शुक्ल
(जन्म: 1904; मृत्यु: 1980)
एक हिंदी और अवधी भाषा के कवि और स्वतंत्रता सेनानी व राजनेता थे।
इनके पिता छेदीलाल शुक्ल भी एक कवि थे। वंशीधर शुक्ल जी महात्मा गाँधी के आन्दोलन से भी भाग लिए। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी विधान सभा से वें विधायक (1959-1962) भी रहे।
“ कदम-कदम बढायें जा खुशी के गीत गाये जा, ये जिंदगी है कौम की तू कौम पर लुटाए जा ” जैसी कालजयी रचना का सृजन करने वाले वंशीधर शुक्ल हैं। ‘उठो सोने वालों सबेरा हुआ है’, ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई’ इनकी अवधी में लिखी हुई पुस्तके हैं। हुजूर केरी रचनावली भी उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ से प्रकाशित हो चुकी है। उन्होंने लखीमपुर खीरी शहर के मध्य में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नाम पर 'गाँधी विद्यालय' की स्थापना की।
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आप की दो रचनायें हिन्दोस्तान के जनमानस में खूब प्रचारित हुई जिसमें एक रचना नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज का मार्च गीत बनी तो दूसरी बापू के सबरमती आश्रम की प्रातः काल की प्रार्थना ।
आज़ाद हिंद फ़ौज का मार्च गीत
कदम कदम बढाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है कौम की
तू कौम पर लुटाये जा
उडी तमिस्र रात है , जगा नया प्रभात है,
चली नयी जमात है, मानो कोइ बरात है,
समय है मुस्कराये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है कौम की
तू कौम पर लुटाये जा।
जो आ पडे कोइ विपत्ति मार के भगाये गे,
जो आये मौत सामने तो दांत तोड लायेंगे,
बहार की बहार में,
बहार ही लुटाये जा।
कदम कदम बढाये जा
खुशी के गीत गाये जा,
जहाम तलक न लक्ष्य पूर्ण हो समर करेगे हम,
खडा हो शत्रु सामने तो शीश पै चडेगे हम,
विजय हमारे हाथ है
विजय ध्वजा उडाये जा
कदम कदम बढाये जा
खुशी के गीत गाये जा
कदम बढे तो बढ चले आकाश तक चढेंगे हम
लडे है लड रहे है तो जहान से लडेगे हम,
बडी लडाईया है तो
बडा कदम बडाये जा
खुसी के गीत गाये जा
निगाह चौमुखी रहे विचार लक्ष्य पर रहे
जिधर से शत्रु आ रहा उसी तरफ़ नज़र रहे
स्वतंत्रता का युद्ध है
स्वतंत्र होके गाये जा
कदम कदम बढाये जा
खुशी के गीत गाये जा
ये जिंदगी है कौम की
तू कौम पर लुटाये जा।
साबरमती आश्रम का प्रार्थना गीत
उठ जाग मुसाफ़िर भोर भई
अब रैन कहा जो सोवत है
जो सोवत है सो खोवत है
जो जागत है सो पावत है
उठ जाग मुसाफ़िर भोर भई
अब रैन कहा जो सोवत है
टुक नींद से अंखियां खोल जरा
पल अपने प्रभु से ध्यान लगा
यह प्रीति करन की रीति नही
जग जागत है तू सोवत है
तू जाग जगत की देख उडन,
जग जागा तेरे बंद नयन
यह जन जाग्रति की बेला है
तू नींद की गठरी ढोवत है
लडना वीरों का पेशा है
इसमे कुछ भी न अंदेशा है
तू किस गफ़लत में पडा पडा
आलस में जीवन खोवत है
है आज़ादी ही लक्ष्य तेरा
उसमें अब देर लगा न जरा
जब सारी दुनियां जाग उठी
तू सिर खुजलावत रोवत है