संकल्प की बुनियाद पर
अग्नि-झंझा क्यों हो भला हावी किसी प्रहलाद पर !
भाव जिसके खड़े हों संकल्प की बुनियाद पर !!
घास की रोटी चबाकर दृढ़ रहे जो कर्मपथ पर
आकर विजय गिरती सदा उसके चरण पर झूमकर
इन्द्रपद का लोभ भी क़ुर्बान उस आबाद पर
भाव जिसके खड़े हों संकल्प की बुनियाद पर !!
जिसके लिए इस सृष्टि का कण कण उसी का रूप है
वही सुन्दर सत्य है अरु वही सच्चा भूप है
बिजलियाँ बेकार सी हैं उस हृदय-प्रासाद पर
भाव जिसके खड़े हों संकल्प की बुनियाद पर !!
जो प्रेय में भी श्रेय का सुमिरन सदा करता रहे
उसके हृदय आनंद का झरना सदा बहता रहे
गुजर सकती पीर की आंधी क्या उस अह्लाद पर
भाव जिसके खड़े हों संकल्प की बुनियाद पर !!
जिससे किसी को डर नहीं उसको किसी का डर नहीं
विश्व जिसका नीड़ हो, कोई भवन जिसका घर नहीं
बेड़ियां सज़दे करेंगी उस प्रखर आज़ाद पर
भाव जिसके खड़े हों संकल्प की बुनियाद पर !!
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