Monday, February 15, 2021

 महाकवि पं. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की जयंती ( वसंत पंचमी 1896 ) पर उनका भावपूर्ण स्मरण एवं सादर शत-शत नमन।


प्रस्तुत है इस अवसर पर उनकी एक प्रसिद्ध रचना-
वर दे, वीणावादिनी वर दे!
प्रिय स्वतंत्र- रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे!
काट अंध्-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे!
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्र रव
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे!
वर दे, वीणावादिनी वर दे।
--- महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

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