Thursday, December 13, 2012

शिक्षा का महत्व


   शिक्षा का महत्व

शिक्षा शब्द का अर्थ है ज्ञानार्जन करना, किसी कार्य के योग्य होने या निष्णात होने की इच्छा। पशुओं और मनुष्यों में यह अंतर है कि मनुष्यों में परमेश्वर ने पशुओं की अपेक्षा स्वाभाविक ज्ञान अधिक दिया है। बहुत से पशु चाहे रेगिस्तान में जन्मे हों व पानी का तालाब तक न देखा हो, परंतु नदी में छोड़ते ही तैरने लगते हैं, जबकि नाविक के बेटे को तैरना सीखना पड़ता है। शिक्षा जीवन का वह महत्वपूर्ण अंग है जो हमें बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक अनुशासित, संयत और प्रगतिशील बनाए रखती है। शिक्षा से मनन शक्ति, चेतना, सद्बुद्धि, विचारशीलता तथा ज्ञान की प्राप्ति होती है। प्राचीन शिक्षा पद्धति में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को जीवन का लक्ष्य माना गया है।

अथर्ववेद के एक मंत्र में कहा गया है- श्शं सरस्वती सह धीभिरस्तुश् जिसका भावार्थ यह है कि शिक्षा के द्वारा जीवन में विवेक का गुण जागृत होना चाहिए, जिससे वह बुद्धि के द्वारा दुर्गुणों को छोड़े और सद्गुणों को अपनाए। यह सुसंस्कृत बुद्धि मनुष्य को आजीवन सुरक्षा प्रदान करती है। कहा गया है-श्विद्या ददाति विनयम्श् विद्या से सुशीलता प्राप्त होती है। इसके द्वारा ही श्रद्धा और मेधा प्राप्त होती है। प्राचीन समय से शिक्षा का लक्ष्य शुद्ध संस्कार और पवित्र धर्म की भावना जागृत करना रहा है। शिक्षा वह बहुमूल्य निधि है जो हमें स्थूल और सूक्ष्म विषयों का ज्ञान कराती है। शिक्षा हमें इस योग्य बनाती है कि हम धन अर्जित कर सकें, परंतु यह इसे प्राप्त करने का एकमात्र उद्देश्य नहीं होना चाहिए। यह मनुष्य में लौकिक व्यवहारों का ज्ञान कराकर समाज में उचित रूप से व्यवहार करना सिखाती है। शिक्षा के द्वारा ही हमें वेद, उपनिषद, दर्शन की ओर अग्रसर करती है। हम ब्रह्म, आत्मा, लोक-परलोक आदि गूढ़ विषयों का चिंतन करते हैं। हमें ज्ञात होता है कि मनुष्य जीवन बहुमूल्य है। इसका उद्देश्य केवल भौतिक सुख प्राप्त कराना नहीं है, बल्कि आत्मज्ञान, ब्रह्मज्ञान और मोक्ष प्राप्त करना है। इसीलिए कहा गया है कि सा विद्या या विमुक्तये अर्थात् विद्या वह है जो हमें अमरता प्राप्त कराती है। 

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