फूल और काँटा
फूल और काँटा हैं
जन्म लेते जगह में एक ही, एक ही पौधा उन्हें है पालता रात में उन पर चमकता
चाँद भी, एक ही सी चाँदनी है डालता ।
मेह उन पर है बरसता एक सा, एक सी
उन पर हवाएँ हैं बहीं पर सदा ही यह दिखाता है हमें, ढंग उनके एक से होते नहीं
।
छेदकर काँटा किसी की उंगलियाँ, फाड़ देता है किसी का वर
वसन प्यार-डूबी तितलियों का पर कतर, भँवर का है भेद देता श्याम तन
।
फूल लेकर तितलियों को गोद में भँवर को अपना अनूठा रस पिला, निज
सुगन्धों और निराले ढंग से है सदा देता कली का जी खिला ।
है खटकता एक
सबकी आँख में दूसरा है सोहता सुर शीश पर, किस तरह कुल की बड़ाई काम दे जो
किसी में हो बड़प्पन की कसर ।
आँख का
आँसू
आँख का आँसू ढ़लकता देखकर जी तड़प कर के हमारा
रह गया क्या गया मोती किसी का है बिखर या हुआ पैदा रतन कोई नया ?
ओस
की बूँदे कमल से है कहीं या उगलती बूँद है दो मछलियाँ या अनूठी गोलियाँ चांदी
मढ़ी खेलती हैं खंजनों की लडकियाँ ।
या जिगर पर जो फफोला था पड़ा फूट
कर के वह अचानक बह गया हाय था अरमान, जो इतना बड़ा आज वह कुछ बूँद बन कर रह
गया ।
पूछते हो तो कहो मैं क्या कहूँ यों किसी का है निराला पन
भया दर्द से मेरे कलेजे का लहू देखता हूँ आज पानी बन गया ।
प्यास थी
इस आँख को जिसकी बनी वह नहीं इस को सका कोई पिला प्यास जिससे हो गयी है
सौगुनी वाह क्या अच्छा इसे पानी मिला ।
ठीक कर लो जांच लो धोखा न
हो वह समझते हैं सफर करना इसे आँख के आँसू निकल करके कहो चाहते हो प्यार
जतलाना किसे ?
आँख के आँसू समझ लो बात यह आन पर अपनी रहो तुम मत
अड़े क्यों कोई देगा तुम्हें दिल में जगह जब कि दिल में से निकल तुम यों पड़े
।
हो गया कैसा निराला यह सितम भेद सारा खोल क्यों तुमने दिया यों किसी
का है नहीं खोते भरम आँसुओं, तुमने कहो यह क्या किया ?
एक
बूँद
ज्यों निकल कर बादलों की गोद से थी अभी एक
बूँद कुछ आगे बढ़ी सोचने फिर-फिर यही जी में लगी, आह ! क्यों घर छोड़कर मैं
यों बढ़ी ?
देव मेरे भाग्य में क्या है बढ़ा, मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल
में ? या जलूँगी फिर अंगारे पर किसी, चू पडूँगी या कमल के फूल में
?
बह गयी उस काल एक ऐसी हवा वह समुन्दर ओर आई अनमनी एक सुन्दर सीप का
मुँह था खुला वह उसी में जा पड़ी मोती बनी ।
लोग यों ही हैं झिझकते,
सोचते जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर किन्तु घर का छोड़ना अक्सर
उन्हें बूँद लौं कुछ और ही देता है कर ।
कर्मवीर
देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते
नहीं रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं काम कितना ही कठिन हो किन्तु
उबताते नहीं भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं हो गये एक आन में उनके
बुरे दिन भी भले सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले ।
आज करना है
जिसे करते उसे हैं आज ही सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही मानते जो
भी हैं सुनते हैं सदा सबकी कही जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही भूल कर
वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं
।
जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं काम करने की जगह बातें बनाते
हैं नहीं आज कल करते हुये जो दिन गंवाते हैं नहीं यत्न करने से कभी जो जी
चुराते हैं नहीं बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिये वे नमूना आप बन जाते
हैं औरों के लिये ।
व्योम को छूते हुये दुर्गम पहाड़ों के शिखर वे घने
जंगल जहां रहता है तम आठों पहर गर्जते जल-राशि की उठती हुयी ऊँची लहर आग की
भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं भूलकर भी
वह नहीं नाकाम रहता है कहीं । |
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