'कविता किरण' की कविता‘
धूप है, बरसात है, और हाथ में छाता नहीं
दिल मेरा इस हाल में भी अब तो घबराता नहीं
मुश्कि़लें जिसमें न हों वो जि़ंदगी क्या जिंदगी
राह हो आसां तो चलने का मज़ा आता नहीं
चाहनेवालों में षिद्दत की मुहब्बत थी मग़र
जिस्म से रिष्ता रहा था रूह से नाता नहीं
माँगते देखा है सबको आस्माँ से कुछ न कुछ
दीन हैं सारे यहां कोई भी तो दाता नहीं
मिला गया वो सब क़तई जिसकी नहीं उमींदथी
पर जो पाना चाहते थे दिल वही पाता नहीं
जि़दगी अपनी तरह कब कौन जी पाया ‘किरण’
वक्त लिखता है वो नग़में दिल जिसे गाता नहीं
- कविता‘ किरण
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