Monday, March 4, 2013

कविता मैथिलीशरण गुप्त




नर हो न निराश करो मन को 
                
                                       मैथिलीशरण गुप्त 


नर हो न निराश करो मन को
       
        कुछ काम करो कुछ काम करो

जग में रहके निज नाम करो

         यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो

समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो

       कुछ तो उपयुक्त करो तन को

नर हो न निराश करो मन को ।

       संभलो कि सुयोग न जाए चला

कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
      
       समझो जग को न निरा सपना

पथ आप प्रशस्त करो अपना

        अखिलेश्वर है अवलम्बन को

नर हो न निराश करो मन को ।

        जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ

फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ

        तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो

उठके अमरत्व विधान करो

        दवरूप रहो भव कानन को

नर हो न निराश करो मन को ।

         निज गौरव का नित ज्ञान रहे

हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे

        सब जाय अभी पर मान रहे

मरणोत्तर गुंजित गान रहे

        कुछ हो न तजो निज साधन को

नर हो न निराश करो मन को ।

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