बालक के अधिकार--- गिजुभाई
गिजुभाई तो गाँधी जी की तरह बालकों के लिए कहते थे- ''करेंगे या मरेंगे।
गिजुभाई ने अपने बालदर्शन में जो कहा है यही उनके बालदर्शन का सार तत्व है-
''मैं पल-पल में नन्हे बालकों में विराजमान, महान आत्मा के दर्शन करता रहता हूँ। यह दर्शन ही मुझे इस बात के लिए प्रेरित कर रहा है। कि मैं बालकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए जिन्दा रहूँ और इस काम को करते-करते मर मिट जाऊ।
गिजुभाई बालक की स्वतन्त्रता व उसको सम्मान दिलाने के लिए निरन्तर प्रयास करते रहे। उन्होने घर व विधालय दोनों जगह पर बालकों की स्वतंत्रता व सम्मान का हनन होते देखा। इसलिए गिजुभाई ने बालकों के माता-पिता और शिक्षकों का आहवान किया- ''बालक को उचित स्थान दिलाने के लिए आइए, हम कमर कसें, हथियार थामें और युद्ध करें। आइए, बालक के बीच आने वाले अवरोधों को हम हटा दें। बालक के लिए, बलिक, स्वयं अपने लिए आइए, हम इस दुनिया को असिथर कर डालें, व्यथित और अशांत कर दें। बालकों के अधिकारों के निमित्त शिक्षकों और अभिभावकों द्वारा छेड़ा हुआ युद्ध भले ही इतिहास में न लड़ा गया हो, पर हम लड़ेंगे। इस युद्ध में हम जात-पात भुला दें। रंगभेद भुला दें और एकमात्र बालक के लिए, समग्र मानव-जीवन की उम्मीद के लिए; समग्र मनुष्य जीवन की मनुष्यता के परिणाम के लिए विजयी युद्ध करें। यह युद्ध हमारी संकीर्णता, हमारे मताग्रह, हमारे अज्ञान, हमारी गुलामी, हमारे भेदभाव और हमारी नासितकता के विरुद्ध लड़ना है हमें। पहले हमें इनसे मुक्त होना पड़ेगा; तभी बालक के प्रति हमारा युद्ध पूरा होगा; और हमारे जीवन का कर्तव्य भी तभी पूरा होगा। आइए, हम एक होकर अपने इस कार्य की सिद्धि के लिए प्रार्थना करें कि तेजोमय हमें तेज दे, चेतनमय हमें चेतना दे, अनंत विजय हमें विजय
दे।
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