सामाजिक कार्यकर्ता-
गिजुभाई एक सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्होने समाज में प्रचलित बुराइयों को खत्म करने का प्रयास किया। इनमें से एक बुराई है कि समाज में व्याप्त रिश्वत या घूस। गिजुभाई का मानना है कि समाज में व्याप्त रिश्वत या घूस का कारण बाल शिक्षण के कुसंस्कारों मे ही निहित है। बालक को एक टाफी देकर हम अपने मेहमान को नमस्कार करवाते हंै या कविता सुनवाते हैं। पैसे देकर उसे कुछ काम करने के लिए कहते हैं। बेचारा बालक टाफी के लिए काम करता है परिणामस्वरुप उसके स्वभाव अथवा मनोभावों का ऐसा निर्माण हो जाता है कि हम उसे पैसा या कुछ और देकर ही काम करवा सकंेगे। शुरु-शुरु में इस तरफ हमारा ध्यान नही जाता, लेकिन जब विदेशी जासूस चन्द रुपये देकर हमारे कर्मचारियों से महत्त्वपूर्ण फाइले उठा ले जाते है, तब जाकर हमारी आंखे खुलती है। तब हम विचार करते है कि देशभक्ति आजकल पूर्णतया नष्ट हो गयी है। रिश्वत-भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है, बिना लिए-दिए कोई भी काम करना संभव नहीं है। इसलिए गिजुभाई ने अपने बालमन्दिर से तथा अपनी शिक्षण पद्धति से पुरस्कार और स्पर्धा को निष्कासित कर दिया था। ताकि आज का बालक व कल का भावी नागरिक लोभी-लालची न बने तथा देश से इस दुर्गुण का उन्मूलन हो सके।
गिजुभाई के बालमन्दिर में सभी जातियों, धर्मों और वर्गों के बालकों को शिक्षा प्राप्त करने की स्वतंत्रता थी। वे बालक की स्वतंत्रता तथा शाला के स्वतंत्र वातावरण के हिमायती थे क्यांेकि उनका विचार था- ‘‘जाति या वर्ग के भेदों को बालक स्वच्छन्द वातावरण में तोड़ डालते हैं।’’ गिजुभाई ने दलित परिवारों के बालकों को पढ़ाने की शुरुआत की तो लोगों ने विरोध किया। लेकिन गिजुभाई ने अपना शिक्षण कार्य जारी रखा। इस घटना के बारे मे गिजुभाई कहते हैं- ‘‘जब मै उन्हे पढ़ाता था तो लोग चारों ओर देखने के लिए आ जाते और कहते थे: ‘भाई’ ! ब्राह्मण होकर इन ढेढों को पढ़ाते हो? उनके पास जाने से आप भ्रष्ट नही हो जाते हो?
मैं बोला: यह काम ब्राह्मण का ही तो है। अगर मै गुरु हूँ तो शिष्यों के पास जाने से भ्रष्ट नहीं हो जाऊँगा। गुरु कभी भ्रष्ट नहीं होगा।’’ गिजुभाई का विचार था कि शिक्षक अस्पृश्यता निवारण के लिए शिक्षा के माध्यम से पहल करें। शिक्षालयों का भी यह लक्ष्य होना चाहिए कि शिक्षा के माध्यम से ऊँच-नीच, जाति-धर्म, अमीर-गरीब का भेद समाप्त हो और प्रत्येक मनुष्य को समान अधिकार मिलें।
अमीर गरीब का भेद उनके मस्तिष्क में नहीं था। भिन्न-भिन्न वातावरणों से आने वाले बालकों के साथ वे सावधानी पूर्वक व्यवहार करते थे। अमीर परिवार के बालकों को समझाकर वे उनकी आदते छुड़वाते थे। एक तरफ उनके प्रति पूर्ण सहानुभूति का व्यवहार और दूसरी ओर अपने सद्गुणों की अनाक्रामकता- अपने व्यक्त्वि को आरोपित न करने की ऐसी विशिष्टता गंाधी जी के अलावा बिरले ही व्यक्तियांे में दिखाई देती है।
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